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________________ होता है, वहां भटकाव से बचने के लिए किसी एक पथ को निश्चित रूप से पकड़ना अवश्यक है, अन्यथा भटकाव की बहुत संभावना हैं। वह स्वयं कदाचित न भटके तो दंभी लोग उसे पथच्युत कर देते हैं, उसे उन्मार्ग में डाल देते हैं, भटका देते हैं, परंतु जो परिपक्व अवस्था में है, वह चाहे किसी अवस्था में क्यों न रहे, वह कभी भटकेगा नहीं, दूसरों के बहकावे में नहीं आएगा। ऐसी स्थिति में संप्रदायविशेष से जुड़े रहने की विशेष उपादेयता नहीं रह जाती। इसलिए ऐकांतिक आग्रह की बात उचित नहीं है। एक भ्रांति का निवारण आज मुझे अहिंसा के संबंध में कछ कहना है। यों तो अहिंसा की परिचर्चा सदा से चलती आई है, लेकिन जब से राजनीतिक क्षेत्र में उसका प्रवेश हुआ है, तब से वह अधिक चर्चनीय बन गई है। प्राचीन धारणा के अनुसार कुछ समय पूर्व तक अहिंसा को धर्म-क्षेत्र तक सीमित रखा जाता था। इसके अतिरिक्त उसे कहीं अवकाश नहीं था। मैं मानता हूं, यह अहिंसा के विषय में एक बहुत बड़ी भ्रांति थी। गांधीजी ने यह भ्रांति मिटाकर राजनीतिक क्षेत्र में अहिंसक प्रयोग किए। यह ठीक ही बात है कि बड़ी भ्रांति बड़े आदमी ही मिटा सकते हैं। थोड़ा-बहुत अंधकार तो दीपक मिटा सकते हैं, पर उसका सर्वनाश तो सूर्य के द्वारा ही संभव हो पाता है। गांधीजी के प्रयत्न से लोगों की समझ में आया कि अहिंसा एक व्यापक तत्त्व है और जीवन की सार्थकता के लिए उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। अहिंसा का क्या उपयोग है लेकिन जो लोग अहिंसा का सिद्धांत ठीक ढंग से समझ नहीं पाए हैं, उनके दिमाग में आज भी अहिंसा एक प्रश्नचिह्न बनी हुई है। अभी पिछले दिनों जब मैं डाबड़ी में था, तब दिल्ली से अनेक पत्रकार आए। उनमें से एक पत्रकार ने अलग समय लेकर पूछा-'हमारा भारत अहिंसाप्रधान देश है। हम अहिंसा की बात करते हैं और उसी को आधार मानकर काम करते हैं। लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि इससे क्या काम हो रहा है; वर्तमान में जबकि हमारा देश संकटकालीन स्थिति से होकर गुजर रहा है, अहिंसा का क्या उपयोग है? पाकिस्तान और चीन के आक्रमण के दौरान राष्ट्र हथियार न उठाए, सैनिक कार्रवाई .१८ आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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