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________________ नहीं रखना, अनावश्यक पानी नहीं गिराना आदि का विवेक हो तो इनसे होनेवाली अनावश्यक हिंसा का बचाव हो जाता है। किसान लोग खेती करते हैं। हल के नीचे आकर सैकड़ों कीड़े-मकोड़े मर जाते हैं। यदि उस समय किसान लोग विवेक से काम लें तो हिंसा से काफी बचाव हो सकता है। जैन-धर्म ने विवेक पर अत्यधिक बल दिया है। शास्त्रों में कहा गया है-विवेगे धम्ममाहिए-विवेक ही धर्म है। मैं मानता हूं, यदि यह विवेक की बात समझ में आ जाए तो जीवन में अहिंसा की पुट की बात समझ में आ जाएगी।' मैंने कहा-'विवेक की अपेक्षा अहिंसा की साधना के लिए ही अपेक्षित नहीं है, बल्कि हर प्रवृत्ति में आवश्यक है। एक विवेकविकल व्यक्ति अपना हित-अहित नहीं सोच सकता। उसे यह भी पता नहीं रहता कि भोजन किसलिए करना चाहिए, स्वाद के लिए या पेट भरने के लिए। स्वादिष्ट भोजन मिलने पर वह मात्रा का ध्यान नहीं रख पाता। एक बार किसी भोज में एक व्यक्ति भोजन करने गया। भोज में लड्डू परोसे गए। उसने इतने लड्डू खाए कि पानी के लिए तो खैर स्थान रहा ही नहीं, उसे श्वास लेने में भी कठिनाई होने लगी। बेचैनी की हालत में वह वहीं लेट गया। लोगों ने वैद्य को बुलाया। वैद्य ने शरीर का निरीक्षण कर कहा-कोई चिंता की बात नहीं है। ज्यादा खाने से बदहजमी हो गई है। दो गोलियां देता हूं। उनसे ठीक हो जाएगा। उस व्यक्ति ने सुना और वह लेटा-लेटा ही बोला-वैद्यजी! गोलियों के लिए स्थान होता तो दो लड्डू ही और न खा लेता!" __ अपनी बात का उपसंहार करते हुए मैंने कहा-'हिंसा और अहिंसा का सिद्धांत गंभीरता से समझना हमारे जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। फिर युद्ध के परिप्रेक्ष्य में तो इसका महत्त्व और भी अधिक है। मैं मानता हूं कि घर, परिवार, समाज और राष्ट्र के दायित्वों से बंधा व्यक्ति अनेक प्रकार की ऐसी प्रवृत्तियां करता है, जिनमें स्पष्ट रूप में हिंसा है। इसी क्रम में हथियार उठाना, युद्ध करना आदि प्रवृत्तियां भी हिंसा हैं। उन्हें अहिंसा कभी नहीं माना जा सकता, पर इसके समानांतर यह भी बहुत स्पष्ट कि वे हत्या की कोटि में नहीं हैं। राष्ट्र की सुरक्षा के लिए हथियार उठाना और हत्या करनाइन दोनों बातों में बहुत अंतर है। राष्ट्र की सुरक्षा के लिए युद्ध करनेवाला कभी हत्यारा नहीं कहलाता, पर युद्ध में भी प्रतिपक्षी राष्ट्र के बेगुनाह व निहत्थे नागरिकों को मारना हत्या है। अहिंसा की परिचर्चा में मुझे पंडित अहिंसा : एक विश्लेषण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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