________________
WWW
६७
२२७
(राजस्थानी) एक कंचन दूजी कामिनी..... एक कंचन दूजी कामिनी" एकण नै दे रे चपेटी............ खाटो खारो खोपरो..... खावण मिलगी खिचड़ी" घर मांहि मिलतो नहीं.......... जिन मारग में देख लो देखू खाती जीमतो....... दया सुखां री बेलड़ी............. बातां साटै हर मिलै...... हिंसा दुखां री बेलड़ी
२२७
1
4
ano
१२९
१२९
पद्यानुक्रम
३२९.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org