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________________ १७७ २०० ० २८५ ९९ १२९ १५० २५७ १५० २४८ .......... सभा जिता वस्त्रवता.... सर्वे भवन्तु सुखिनः सूचिमुखि! दुराचारिणि!. . स्वागमं रागमात्रेण. (प्राकृत) अणुसोय सुहोलोगो...... अट्टो ते अज्जवं साहु. असंख्यं जीवियं मां पमायए' तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा..." धम्मज्जियं च ववहार निच्चुव्विगो जहा तेणो पत्थरेणाहतो कीबो..... वड्ढई सोडिया तस्स" . संबुज्झह किण्ण बुज्झहा सवणे नाणे विन्नाणे सोच्चा जाणइ कल्लाणं (हिंदी) अड़ते से टलता रहे अब तो घबराकर कहते हैं मर जाएंगे 'कबीरा' दर्शन साधु का कर्मप्रधान विश्व करि राखा........ काक सी कोयल श्याम गुरु लोभी शिष्य लालची...... गोधन गजधन वाजिधन...... जिन खोजा तिन पाइया जो दस बीस पचास भए... ज्यों तिल मांहि तैल है... तात! स्वर्ग अपवर्ग सुख... तुम आओ डग एक तो... हाथ तेरे पांव तेरे............ 20 YMN4 00 ० r on in an an an १२८ २४० in ૮૨ २३७ ३३ १७७ .३२८ आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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