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और अधिक बढ़ती जा रही है। एक दृष्टि से वे मर्यादाएं धर्मसंघ के लिए लक्ष्मण-रेखाएं हैं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि उन मर्यादाओं के संरक्षण में यह धर्मसंघ सदा फलता-फूलता रहेगा। धर्मसंघ के प्रत्येक सदस्य का यह कर्तव्य है कि वह उन मर्यादाओं का सजगतापूर्वक पालन करे। वे मौलिक मर्यादाएं हैं
१. संघ के सभी साधु-साध्वियां एक आचार्य की आज्ञा में रहें। २. कोई साधु-साध्वी अपना शिष्य-शिष्या न बनाए। ३. आचार्य भी योग्य व्यक्ति को दीक्षा दें। दीक्षा देने के पश्चात भी
कोई अयोग्य मालूम पड़े तो उसे गण से पृथक कर दें। ४. आचार्य अपने गुरुभाई या शिष्य को उत्तराधिकारी बनाएं तो सब __ साधु-साध्वियां उस निर्णय को सहर्ष स्वीकार करें। ५. कोई साधु-साध्वी पद के लिए उम्मीदवार न बने। ६. सिद्धांत, मर्यादा और परंपरा के किसी विवादस्पद विषय पर कोई
साधु-साध्वी उलझे नहीं। आचार्य जो निर्णय दें, उसे स्वीकार कर ले। यदि उस निर्णय पर श्रद्धा न हो तो उसे केवलगम्य कर दे। पर दूसरे-दूसरे साधु-साध्वियों से उसकी चर्चा करके उन्हें
शंकाशील बनाने का प्रयास न करे। ७. संघ का कोई सदस्य संघ से बहिष्कृत और बहिर्भूत साधु
साध्वियों को किसी प्रकार का प्रश्रय न दे। हालांकि इनमें से अधिकतर मर्यादाएं साधु-साध्वियों के लिए हैं, पर इसका अर्थ यह नहीं कि ये मर्यादाएं श्रावक-श्राविकाओं के लिए उपयोगी नहीं हैं। श्रावक-श्राविकाओं को भी इन मर्यादाओं के प्रति सजगता बरतनी चाहिए। जहां-कहीं इन मर्यादाओं की पालना में प्रमाद नजर आए, उसे मिटाने का प्रयत्न करना चाहिए। उनकी यह सजगता धर्मसंघ के उज्ज्वल भविष्य का एक सुदृढ़ आधार है।
हम आचार्य भिक्षु के अत्यंत ऋणी हैं, जिन्होंने हमें एक मर्यादित, अनुशासित एंव सुव्यवस्थित संघ दिया। हालांकि संख्या की दृष्टि से बड़ेबड़े धर्मसंघ आज हमारे सामने हैं, तथापि जहां भी शुद्धाचार, मर्यादा, अनुशासन और सुव्यवस्था का प्रश्न आता है, वहां तेरापंथ का नाम शीर्षस्थ रहता है। यह हमारे लिए अत्यंत गौरव की बात है। हर कीमत पर हमें यह गौरव सुरक्षित रखना है। इसी में हम सबका हित निहित है। पीलीबंगा, १५ मई १९६६ आचार और मर्यादा
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