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________________ क्यों हैं। अस्थपुट भूमि पार हुई और लड़की बोली-'मैं समझती हूं कि हमारा अभ्यास पूरा हो गया है, इसलिए अब आंखें खोल लेनी चाहिए।' और तीनों ने आंखें खोल लीं। मार्ग में जो ढेर आए थे, वे मिट्टी के नहीं, बल्कि सोने-चांदी के थे। उनकी गरीबी पर तरस खाकर किसी देवता ने ऐसा किया था, लेकिन संपत्ति पाकर भी चूंकि उन्होंने आंखें मूंद लीं, इसलिए उनका दारिद्र्य नहीं मिट सका। बंधुओ! यही बात सुख और शांति की प्राप्ति के संदर्भ में है। जो लोग मार्ग प्राप्त करके भी प्रमाद में जीते हैं, वे सुख और शांति नहीं पा सकते। एक बूंद और इसी प्रकार सुख और शांति का पैगाम सुनकर भी जो व्यक्ति उसे सुना-अनसुना कर देते हैं, वे सुखी नहीं हो सकते, शांति नहीं प्राप्त कर सकते। इस संबंध में मधुबिंदु का उदाहरण प्रसिद्ध है एक व्यक्ति रास्ता भूलकर भयंकर जंगल में भटक गया। फिर योग ऐसा मिला कि तेज तूफान आ गया। आकाश में काले-कजरारे बादल छा गए। तेज कड़क के साथ बिजली चमकने लगी। वह राहगीर गहरी मुसीबत में फंस गया। तभी उसने देखा, एक हाथी उसकी तरफ दौड़ा आ रहा है। उससे बचने के लिए वह तेजी से भागा और थोड़ी दूर पर स्थित एक वृक्ष पर चढ़ गया। उसे वृक्ष पर चढ़ा देखकर हाथी अत्यधिक उत्तेजित हो उठा। उसने अपनी सूंड से वृक्ष पकड़कर उसे पूरी शक्ति के साथ झकझोरा। इस झकझोर से उस व्यक्ति के हाथ से शाखा छूट गई। पर संयोग से गिरतेगिरते वह एक दूसरी शाखा से टकराया। उसने उसे पकड़ लिया। उस शाखा के नीचे एक कुआं था। कुएं के आस-पास सांप और अजगर फुफकार रहे थे। जिस शाखा को उसने पकड़ रखा था, उसे दो चूहे काटने में व्यस्त थे। वृक्ष के ऊपरी भाग में मधुमक्खियों का एक छाता था। वृक्ष की झकझोर से मधुमक्खियां उड़ीं और वे क्रुद्ध होकर उस व्यक्ति को काटने लगीं। ये सारी बातें देखकर उसे लगा कि मैं मौत के द्वार पर खड़ा हूं। किसी क्षण मौत को प्राप्त हो सकता हूं। तभी सहसा ऊपर के छाते से मधु की एक बूंद टपकी और उसके मुंह में पड़ी। उसे वह मधु अत्यंत मधुर लगा। वह आतुरता से अगली बूंद की प्रतीक्षा करने लगा। दूसरी बूंद • २९६ - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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