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४९ : दुःख-मुक्ति का आवाहन अणुव्रत
संसार सुखकामी है
यह संसार सुख का कामी है। दुःख किसी को काम्य नहीं है, पर चाह मात्र से कोई सुखी नहीं हो जाता। यदि ऐसा संभव हो जाता तो संसार में कोई दुखी प्राणी खोजने से भी नहीं मिलता, लेकिन हम देखते हैं कि संसार में अधिकतर प्राणी दुःख का वेदन करते हैं, अशांत हैं । वस्तुतः सुख-शांति चाह से नहीं, राह से मिलती है। राह के बिना चाह मात्र कल्पना है, सपना है। सपने में कोई व्यक्ति भरपेट भोजन कर सकता है, स्वादिष्ट-से-स्वादिष्ट पकवान खा सकता है, पर उससे उसका कोई मतलब सिद्ध नहीं होता, उसकी उदरपूर्ति नहीं होती। उदरपूर्ति तो जाग्रत अवस्था में भोजन करने से ही हो सकती है। यही बात सुख-प्राप्ति की है। सही मार्ग स्वीकार करके ही व्यक्ति सुख और शांति प्राप्त कर सकता है। सुख क्यों नहीं
धर्म सुख और शांति का मार्ग है। उस पर चलकर हर व्यक्ति सुखी हो सकता है, शांति का अनुभव कर सकता है, पर संसार में ऐसे व्यक्तियों की कमी नहीं है, जो रास्ता सामने होने पर भी आंखें मूंदकर सो रहे हैं। तब उन्हें सुख कैसे मिल सकता है? शांति कैसे मिल सकती है?
एक गरीब परिवार रास्ते से गुजर रहा था। परिवार में कुल तीन व्यक्ति थे-लड़की और उसके माता-पिता। लड़की ने प्रस्ताव रखा-'हम अपने परिवार में तीन ही व्यक्ति हैं। यदि संयोग से तीनों ही अंधे हो गए तो चलेंगे कैसे? इसलिए हमें पहले ही अभ्यास कर लेना चाहिए।'
माता-पिता ने प्रस्ताव स्वीकत कर लिया। तीनों सदस्यों ने अपनेअपने हाथ में लकड़ी ले ली और वे आंखें बंद करके चले। मार्ग में अस्थपुट भूमि आई, लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा कि सड़क पर ये ढेर
दुःख-मुक्ति का आवाहन-अणुव्रत
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