________________
अच्छी योग्यता रखता है, पर व्यापार करने की क्षमता उसमें नहीं के बराबर है। ऐसी स्थिति में वह व्यापार नहीं कर सकता; और किसी स्थिति में करता भी है तो वह सफल नहीं हो सकता। इसी प्रकार एक व्यापारी व्यापार करने की अर्हता से संपन्न है, पर कृषि करने की दृष्टि से बिलकुल अयोग्य है। अब यदि वह अपना व्यापार बंद कर कृषि करना शुरू करता है तो उसका परिणाम क्या होगा, यह आप स्वयं समझ सकते हैं। वह उसमें सफल नहीं हो सकता। यह मात्र कृषिकार और व्यापारी की ही बात नहीं है, अपितु सर्वमान्य सिद्धांत है कि योग्यता के अभाव में कार्य में सफलता नहीं मिलती।
___ व्यापारी के एक बड़ा बगीचा था। एक कुशल माली उसकी संभाल करता था। एक बार ऐसा प्रसंग आया कि माली छुट्टी पर चला गया। वैकल्पिक व्यवस्था हो नहीं सकी। इस स्थिति में उस व्यापारी ने स्वयं ही बगीचे की संभाल करने का निर्णय किया। संध्या के समय पौधों को पानी देना था। उसने सोचा-किस पौधे को कितना पानी देना है, यह उसकी गहराई पर निर्भर है। इसलिए पानी देने से पूर्व मुझे प्रत्येक पौधा उखाड़कर देखना चाहिए कि वह कितना गहरा है। बस, इसी चिंतन के साथ उसने हर-एक पौधा उखाड़कर उसकी गहराई देखी और उसके अनुपात में पानी दिया। इसका परिणाम यह आया कि सारे पौधे नष्ट हो गए। ___ इस उदाहरण से आप समझ सकते हैं कि किसी कार्य की सिद्धि में उसे करने की योग्यता का कितना मूल्य है। जब तक योग्यता हासिल नहीं हो जाती, तब तक व्यक्ति उसे करने का अधिकारी नहीं बनता; और अधिकारी बने बिना वह उसमें सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता। इसी अपेक्षा से मैंने कहा, अभी आप लोग संन्यास के अधिकारी नहीं हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को संबोधित करके कहा है कि अभी तक तुम सांख्ययोग के अधिकारी नहीं हो, इसलिए कर्मक्षेत्र में जाओ और युद्ध करो। अणुव्रत : मनुष्यता का पथ
__मैं आपसे युद्ध करने की बात नहीं कहता। मैं तो यह कहना चाहता हूं कि जब तक आप लोग अपेक्षित योग्यता हासिल करके संन्यास स्वीकार करने का अधिकार प्राप्त न कर लें, तब तक अणुव्रत का पथ स्वीकार करें। इसके आप पूरे अधिकारी हैं। अणुव्रत का पथ सन्नागरिकता
• २९२
- आगे की सुधि लेइ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org