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आत्म-विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र है। इसके ठीक विपरीत प्रमाद संसार के परिभ्रमण का बहुत बड़ा हेतु है। जिस किसी के मन में इस परिभ्रमण से मुक्त होने की प्रेरणा जग जाती है, वह फिर प्रमाद से छूटने के लिए प्रयत्नशील हो जाता है, अपने जीवन का चालू प्रवाह मोड़ देता है; और यह प्रेरणा किसी को किसी निमित्त मिल सकती है।
क्या मैं भी बूढ़ा बनूंगा
गौतम बुद्ध ने जब पहली बार वृद्ध व्यक्ति को देखा तो उनके मन में बड़ा कुतूहल हुआ। उन्होंने उसी भावधारा में उससे पूछा - 'तुम कौन हो ?” वृद्ध ने कहा- 'मैं एक मनुष्य हूं।' बुद्ध ने कहा - 'मनुष्य की ऐसी हालत ! ' वृद्ध बोला- 'मैं एक बूढ़ा मनुष्य हूं।' बुद्ध ने जिज्ञासा की - 'क्या तुम सदा ऐसे ही थे ?' वृद्ध ने बताया- 'नहीं, पहले तो मैं जवान था, सशक्त था, पर इन वर्षों में बुढ़ापे ने आ घेरा है।' बुद्ध ने कहा - 'यह बुढ़ापा क्या बला है ?' वृद्ध बोला- 'प्राणी की एक अवस्था ही बुढ़ापा है।' बुद्ध ने पूछा- 'क्या इसका प्रभाव सब पर होता है ? ' वृद्ध ने उत्तर दिया- 'इस प्राकृतिक नियम से कोई नहीं बच सकता । मात्र वे लोग यह अभिशाप नहीं झेलते, जो युवावस्था में ही अपनी जीवन - यात्रा संपन्न कर देते हैं।' सुनकर बुद्ध स्वयं के प्रति आशंकित हो उठे। उन्होंने पूछा- 'क्या मैं भी बूढ़ा बनूंगा ?' वृद्ध ने कहा- 'मैंने स्थिति स्पष्ट कर दी है।'
बस, इसी प्रसंग ने बुद्ध के अंतःकरण को कचोट डाला और वे संसार से विरक्त होकर संन्यासी बन गए।
प्रसंग थावच्चापुत्र का
जैनागमों में थावच्चापुत्र का उदाहरण भी इसी चिंतन का प्रतीक है। थावच्चापुत्र छोटा बच्चा ही था। उसने मकान की छत पर खड़े-खड़े मधुरमधुर संगीत सुना। वह तत्काल दौड़ा-दौड़ा माता थावच्चा के पास आया और बोला- 'मां ! यह आवाज कहां से आ रही है? मुझे बहुत अच्छी लगती है। ' माता थावच्चा ने कहा - 'पुत्र ! अपने पड़ौसी के अब तक कोई संतान नहीं थी । आज वर्षों की प्रतीक्षा के बाद उसके घर में लड़के का जन्म हुआ है। अतः परिवार के लोग मंगल गीत गा-गाकर खुशियां मना रहे हैं।' मां के इस उत्तर से बच्चे की जिज्ञासा और बढ़ गई। उसने पूछा- 'क्या सभी बच्चों के जन्म के समय मंगल गीत गाए जाते हैं?' थावच्चा ने कहा-' - 'हां, बच्चों के जन्म से आंगन खिल जाता है, अतः
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