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________________ बुराइयों का प्रतिकार करना होगा। एक व्यक्ति पापकारी कामों में रस लेता है। निद्रा, विकथा, आलोचना, गुस्सा... में रचा-पचा रहता है। यह प्रमाद का ही परिणाम है। आप निश्चित माने, प्रमादी व्यक्ति का कल्याण नहीं हो सकता। सोना अच्छा है या जागना भगवान महावीर के सामने एक प्रश्न आया कि मनुष्य का सोना अच्छा है कि जागना। भगवान ने उत्तर दिया कि कुछ व्यक्तियों का सोना अच्छा है और कुछ का जागना। जो घोर पापी और क्रूरकर्मी हैं, उन व्यक्तियों का सोना अच्छा है। क्यों? यह इसलिए कि वे जगते रहेंगे तो रात-दिन पाप करेंगे। इसी के समानांतर जो व्यक्ति शांत हैं, संयत जीवन जीते हैं, उनका जगना अच्छा है। उनका सोना संसार का दुर्भाग्य है। उनके जगने से लाखों-करोड़ों भटके हुए पथिकों को राह मिलती है। प्रसंग आचार्य भिक्षु का भिक्षु स्वामी खड़े-खड़े प्रतिक्रमण करते थे। उनकी वृद्धावस्था को देखते हुए किसी ने निवेदन किया--'आप बैठे-बैठे प्रतिक्रमण किया करें।' भिक्षु स्वामी ने कहा-'मैं खड़ा-खड़ा प्रतिक्रमण करता हूं तो आनेवाले युग के साधु बैठे-बैठे तो करेंगे। यदि मैं बैठे-बैठे करूं तो वे संभवतः लेटे-लेटे करेंगे।' जनता अनुकरणप्रधान होती है श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन से कहते हैं___ यद् यदाचरति श्रेष्ठस्तद् तदेवेतरो जनः। स यत् प्रमाणं कुरुते, लोकश्तदनुवर्तते॥ मैं खड़ा हूं। मुझे काम करने की कोई जरूरत नहीं है, पर मैं काम न करूं तो जनता पर गलत असर पड़ेगा। लोग सत्काम करना भी छोड़ देंगे। जनता अनुकरणप्रधान है। अच्छे काम करनेवाले मिल जाएं तो जनता संपूर्ण आस्था से उनका अनुकरण करने के लिए तत्पर रहती है। आत्म-विकास का सूत्र-अप्रमत्तता अच्छा काम करनेवालों से तात्पर्य है-अप्रमाद का जीवन जीनेवाले। जो भी व्यक्ति अप्रमाद का जीवन जीते हैं, वे जन-जन के लिए आदरास्पद और श्रद्धेय बन जाते हैं। वस्तुतः अप्रमत्तता महानता का लक्षण और • २८६ - - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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