SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७ : आगे की सुधि लेइ जीवन क्षणभंगुर है हमारा जीवन असंस्कृत है। डोर छूट गई तो फिर हाथ में नहीं आएगी। रज्जु टूट गई तो फिर संधान नहीं होगा। हवा निकल गई तो वापस आने की नहीं। हालांकि आज के वैज्ञानिक इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। डॉक्टर दूसरा हार्ट लगाकर व्यक्ति को जिलाने की कोशिश करते हैं, पर मैं सोचता हूं कि वे वहीं पर सफल हो सकते हैं, जहां जीवनी शक्ति पूर्णतः समाप्त न हो। जीवनी शक्ति समाप्त हो जाने के बाद जीना असंभव है। किसी यंत्र के सहारे भी व्यक्ति जीता है तो उसकी भी एक अवधि है। आखिर तो सबको मरना ही है। इसलिए हमें मानना होगा कि जीवन क्षणभंगुर है। इस क्षणभंगुर जीवन को सफल बनाने के उपाय शास्त्रों में निर्दिष्ट हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है असंखयं जीविय मा पमायए, जरोवणीयस्सु हु नत्थि ताणं। एवं वियाणाहि जणे पमत्ते, कण्णू विहिंसा अजया गहिति॥ जीना बहुत कम है, इसलिए प्रमाद से बचना चाहिए। जागरूक व्यक्ति दो दिन में जो काम कर सकता है, वही काम एक प्रमादी व्यक्ति दो वर्षों में भी नहीं कर सकता। एक अप्रमादी और विशिष्ट ज्ञानी अपनी साधना से कुछ क्षणों में ही इतने कर्म क्षीण कर देता है, जितने कर्म एक प्रमादी और अज्ञानी व्यक्ति हजार वर्षों में भी खत्म नहीं कर सकता। इसलिए जागरूकता लाने की अत्यंत आवश्यकता है, प्रमाद मिटाने की नितांत अपेक्षा है। बुराई-मात्र भाव निद्रा है। चूंकि भाव निद्रा प्रमाद है, इसलिए प्रमाद को सबसे बड़ा शत्रु माना गया है। अप्रमत्त रहने के लिए सबसे पहले आगे की सुधि लेइ • २८५ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy