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४४ : मैत्री और राग
मैत्री : स्वस्थ जीवन का उदात्त घोष
आगम का एक वाक्य है- मित्ती मे सव्वभूएसु । अर्थात मेरी सब प्राणियों के साथ मैत्री है। स्वस्थ जीवन के लिए यह उदात्त घोष आवश्यक है । एक अस्वस्थ व्यक्ति इसे स्वीकार नहीं कर सकता, पर यह शारीरिक अस्वास्थ्य की बात नहीं है। यह बात है मानसिक स्वास्थ्य की । जिसका मन अस्वस्थ है, वह संसार के समस्त प्राणियों के साथ मैत्री की बात नहीं कर सकता ।
मैत्री और राग
मैत्री को राग भी कहा जाता है, पर व्यापक मैत्री का समावेश राग में नहीं होता । राग यानी प्रेम । यह द्वेष की तरह ही बंधन है । द्वेष दावानल है, जबकि राग हिमपात है। दावानल से वृक्षों को हानि होती है तो हिमपात से भी कम नहीं होती । अग्नि जलाती है तो बर्फ भी दाह पैदा कर देती है। अंतर इतना है कि एक गरम है और एक ठंडी। द्वेष से व्यक्ति जलता है तो राग भी व्यक्ति को जला देता है । द्वेषी को देखने से खून उबलने लगता है तो रागी के विरह में हृदय जलता है। चूंकि राग और द्वेष दोनों ही आत्म-विकास में बाधक हैं, अतः त्याज्य हैं।
राग और मैत्री में अंतर है। राग संबंधी के प्रति होता है, स्वार्थ के लिए होता है, इसलिए बंधन है । मैत्री उनके प्रति होती है, जिनके साथ कोई संबंध नहीं होता । दुश्मन के साथ राग नहीं होता, पर मैत्री हो सकती है । मैत्री का अर्थ है - वैर - त्याग | मैत्री का पर्याचवाची शब्द है-अहिंसा । अंतर इतना ही है कि मैत्री विधेयात्मक है और अहिंसा निषेधात्मक । 'मैं किसी को नहीं मारूंगा' यह अहिसा है। 'मैं सबके साथ ऊंचा प्रेम रखूंगा'- ' - यह मैत्री है।
मैत्री और राग
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