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________________ आज तक बहुत संकल्प किए, लेकिन वे सब टूट गए। गुरुद्वारा में जाकर संकल्प किए, पर मन विचलित हो गया । संकल्प लेकर तोड़ना महापाप है, इसलिए मैं सोचता हूं कि संकल्प लेना ही नहीं चाहिए, पर आप संकल्प लेने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए ?' उसे समाहित करते हुए मैंने कहा - ' आपने संकल्प आत्मसाक्षी से किए हैं और गुरुद्वारा में भी किए हैं, पर गुरु द्वारा यानी गुरु की साक्षी से नहीं किए हैं। हालांकि आत्म साक्षी बुरी बात नहीं है, पर सबकी आत्मा मजबूत नहीं होती। अतः एक शक्ति सामने रहे तो बल मिलता रहता है। दूसरी बात यह है कि आप संकल्प करते हैं, कार्य/परिणाम समाप्त करना चाहते हैं, पर कारणों का संसर्ग नहीं छोड़ते। उदाहरणार्थ, आपका संकल्प है कि मैं शराब नहीं पीऊंगा। इसे निभाने के लिए आपको शराबियों का संसर्ग छोड़ना पड़ेगा, उनकी गोष्ठी में सम्मिलित होने से परहेज करना होगा, अन्यथा शराब न पीने का संकल्प निभना कठिन हो जाएगा । ' बंधुओ ! यह कार्य और कारण की बात आपको गंभीरता से समझनी चाहिए। भगवान महावीर ने अपने शिष्यों से कहा - 'संतो ! ब्रह्मचारी रहना है, अब्रह्मचर्य से बचना है तो अब्रह्मचर्य के सब कारण मिटाओ। एकांत में रहो। अश्लील शब्द मत बोलो, मत सुनो। स्मृति - संयम करो। खाद्य-संयम करो। भीतरी वासना उत्तेजित मत करो। "ऐसा करके ही तुम अब्रह्मचर्य से बच सकोगे'। विदेशी विद्वानों ने भगवान महावीर और बुद्ध का अंतर बताते हुए कहा- 'बुद्ध और महावीर समकालीन थे। दोनों श्रमण संस्कृति के नेता थे। पर दोनों में एक अंतर था - महावीर वैद्य थे और बुद्ध डॉक्टर | बुद्ध रोग मिटाते थे, जबकि महावीर रोग का मूल मिटाते थे।' इस बात में सचमुच तथ्य है। महावीर समस्या के मूल पर प्रहार करके उसे मिटाने में विश्वास करते थे। मैं तो मानता हूं कि समस्या का मूल खोजना, कारण देखना और फिर उसे मिटाने का प्रयास करना महानता की पहचान है, सफलता का सूत्र है । कहा गया है पत्थरेणाहतो कीबो, खिप्पं डसइ पत्थरं । मिगारी उ सरं पप्प, सरुप्पत्तिं व मग्गति ।। कुत्ता कार्य देखता है और शेर कारण । श्वान के सामने कोई पत्थर आकर गिरे तो वह पत्थर को ही चाटने लग जाता है, धर्म का तूफान Jain Education International For Private & Personal Use Only २५७ www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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