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बंधुओ ! यह बात सुनाने का मकसद यह है कि आप भी स्वयं को संभालें और समय रहते-रहते सजग हो जाएं। सजगता का अर्थ यह नहीं है कि आप सबको हमारी तरह संन्यासी बनना होगा, अपने बाल-बच्चों को छोड़ना होगा । आप सब लोगों के लिए यह न तो संभव है और न व्यवहार्य ही। हालांकि संन्यासी होना बहुत ऊंची बात है, तथापि जो संभव और व्यवहार्य न हो, वह बात कहने से कोई फायदा नहीं। इसलिए मैं आपसे वही बात कहना चाहता हूं, जो संभव और व्यवहार्य है। आप पूछेंगे कि वह बात क्या है। वह बात बहुत सीधी-सी है। आप जिस वर्ग और पेशे में जी रहे हैं, उसमें अच्छी जिंदगी जीने का प्रयास करें। ईमानदारी, प्रामाणिकता और नैतिकता की टेक निभानेवाला आदमी अच्छा आदमी, अच्छा नागरिक कहलाता है। अच्छा नागरिक देश को उन्नति के पथ पर ले जा सकता है। हालांकि अच्छे मार्ग पर चलना तलवार की धार पर चलने के समान है। इसी लिए तो भर्तृहरि ने अपने नीतिशतक नामक ग्रंथ में लिखा हैन्याय्यावृत्तिर्मलिनमसुभगेऽप्यसुकरमसन्तो नाभ्यर्थ्याः सुहृदपि न याच्यः कृशधनः । विपद्युच्चैः स्थेयं पदमनुविधेयं च महतां, केनोद्दिष्टं विषममसिधारा - व्रतमिदम् ॥
प्रिया
सतां
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• जो व्यक्ति सन्नागरिक बनकर रहना चाहता है, वह न्यायप्रिय होता है। वह प्राण जाने पर भी पापकारी काम नहीं करता, असज्जन की अभ्यर्थना नहीं करता । नाजुक हालत में भी मित्रों से याचना नहीं करता । विपत्ति में भी उसके अध्यवसाय ऊंचे रहते हैं। वह महान व्यक्तियों का अनुकरण करता है। असिधार के समान यह विषम व्रत सज्जनों के लिए किसने बताया है ?
पर मैं मानता हूं कि अच्छी चीज कठिनाई से मिलती है। इसलिए कठिनाई से घबराना नहीं चाहिए। हर स्थिति में अच्छी चीज तो प्राप्त करनी ही चाहिए। सन्नागरिक बनने में भी कठिनाई आती है तो उसका दृढ़ता से मुकाबला करके आगे बढ़ना चाहिए ।
आज राष्ट्र की जो दुर्दशा हो रही है, उसका प्रमुख कारण सन्नागरिकता का अभाव ही है। आप अपनी चिंता करते हैं, पर पासपड़ोस के बारे में आंखें मूंद लेते हैं। घर की सफाई करते हैं और कूड़ा पड़ोसी के घर के बाहर डाल देते हैं। अब आप ही बताएं कि पड़ोसी के
आगे की सुधि ले
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