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________________ कर नहीं पाते। इसलिए अपना भविष्य संवारने की भावना रखनेवाले व्यक्ति को अपमा वर्तमान संवारने के प्रति सजग हो जाना चाहिए। जो क्षण उसके हाथ में है, उसका उसे अच्छा-से-अच्छा उपयोग करना चाहिए। अवसर चूक जाने के पश्चात तो व्यक्ति के लिए अनुताप शेष बचता है। कितनी सार्थक है यह उक्ति-अवसर का चूका गोता खाए। हाथी का बच्चा क्या करता है बादशाह अकबर का दरबार लगा था। मुसद्दी, सुल्तान, वजीर आदि सब यथास्थान बैठे थे। उसी समय एक गांधी (इत्र बेचनेवाला) वहां आया। बादशाह को इत्र का बहुत शौक था। उसने इत्र देखना प्रारंभ किया। सहसा इत्र की एक शीशी हाथ से छूटकर नीचे गिर गई और फूट गई। सारा कीमती इत्र जमीन पर बिखर गया। अकबर चौंका। झट नीचे गिरा इत्र उसने अपने वस्त्रों और मूंछ पर लगाना शुरू कर दिया। तभी सहसा उसकी दृष्टि बीरबल पर पड़ी। वह बादशाह का यह व्यवहार देखकर मुलक रहा था। बादशाह समझ गया कि बीरबल मुझे कृपण मानकर हंस रहा है, पर बोलता भी क्या ? मन-ही-मन निर्णय किया कि जैसे-तैसे यह कलंक धोना है। बस, दूसरे ही दिन बादशाह ने देश-भर के गांधियों को उत्तम-से-उत्तम इत्र लेकर उपस्थित होने का आदेश दे दिया। आदेश की देर थी। चारों तरफ से इत्र पहुंचने लगा। कुछ ही समय में बहुत-सा इत्र इकट्ठा हो गया। तब बादशाह ने एक हौज बनवाया और उसे इत्र से भरा दिया। दूसरे दिन उसने एक हाथी के बच्चे को उस हौज में छुड़ा दिया और स्वयं सामने चबुतरे पर बैठ गया। हाथी का बच्चा अपनी सूंड में इत्र भर-भरकर चारों ओर बिखेरने लगा। थोड़ी देर बाद सभासदों के साथ बीरबल उधर आया। उसे देखते ही बादशाह बोला-'बीरबल! वह हाथी का बच्चा क्या कर रहा है?' बीरबल भी तो चूकनेवाला नहीं था। छूटते ही बोला-'जहांपनाह! अवसर का चूका गोता खा रहा है!' बीरबल का यह उत्तर सुनकर बादशाह सन्न रह गया। बीरबल यह अच्छी तरह से समझ रहा था कि उस दिन बादशाह ने कंजूसी का जो धब्बा लगा लिया था, उसे धोने के लिए यह सारा प्रपंच किया है। अतः उसने स्पष्ट जता दिया कि उस दिन आप नीचे गिरा हुआ इत्र नहीं लगाते तो यह लाखों रुपयों का धुआं क्यों उड़ता। जाग्रति : क्यों : कैसे .२५१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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