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________________ हर बार हाफिज ही वहां पहुंचा और उसने जीवन के अनावृत रहस्यों के बारे में जानकारी प्राप्त की, पर एक हाफिज ही गुरु के पास आया, इसका अर्थ यह नहीं है कि दूसरे-दूसरे शिष्य उच्छृखल थे अथवा वे ज्ञान प्राप्त करना नहीं चाहते थे या वे आदेश के प्रति सजग नहीं थे। मूलतः वे सब गहरी नींद में चले गए थे, इसलिए गुरु के आह्वान पर वे उनके पास नहीं पहुंच सके। जो शिष्य रात-भर जगा, उसने गुरु की सारी संपत्ति प्राप्त कर ली। बंधुओ! यही बात आप लोगों की भी है। आप लोग भी गुरुसान्निध्य से लाभ तभी प्राप्त कर सकेंगे, जब सजग रहेंगे। जो लोग प्रमादी बनकर रहेंगे, उन्हें तत्त्व नहीं मिल सकेगा। वर्तमान का मूल्य बंधुओ! इस उदाहरण से आप समझें कि तत्त्व की प्राप्ति के लिए सजगता कितनी अपेक्षित है। सहज-से-सहज तत्त्व भी सजगता के अभाव में व्यक्ति प्राप्त नहीं कर पाता। मैं देखता हूं, बहुत-से व्यक्ति अपना परलोक सुखी बनाने के लिए अत्यंत चिंतित हैं, पर अपने वर्तमान के प्रति सजग नहीं हैं। मैं नहीं समझता कि ऐसी स्थिति में उनका परलोक सुखमय कैसे बनेगा। भविष्य तो वर्तमान पर ही आधारित है। यदि वर्तमान शुद्ध नहीं है, स्वस्थ नहीं है तो भविष्य के शुद्ध और स्वस्थ होने का प्रश्न ही नहीं है। यदि वर्तमान शुद्ध और स्वस्थ है तो भविष्य को सुखमय बनाने की चिंता करना बेमानी है। वह तो स्वयं सुखमय बन जाएगा। इसलिए अपना भविष्य सुखमय बनाने के इच्छुक हर व्यक्ति को चाहिए कि वह उसे शुद्ध और स्वस्थ वर्तमान का आधार प्रदान करे। इसके सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं है, रास्ता नहीं है। संसार में ऐसे व्यक्तियों की कोई कमी नहीं है, जो इस तथ्य से परिचित होकर भी अपने वर्तमान जीवन के प्रति सजग नहीं हैं, उसका सही-सही उपयोग नहीं करते हैं। यह इसलिए कि उनका चिंतन सही नहीं है। वे इस भाषा में सोचते हैं कि अभी क्या करना है, जीवन बहुत लंबा है। अंतिम अवस्था में ऐसी साधना करेंगे, जिससे हमारा भविष्य सुधर जाएगा, पर उनका यह सोचना सोचने तक ही रह जाता है, क्रियान्वित नहीं हो पाता। कुछ को तो वह अंतिम अवस्था आती ही नहीं, जिसकी वे कल्पना करते हैं। कुछ लोगों को वह अवस्था तो प्राप्त होती है, पर उस समय उनकी शारीरिक स्थिति ऐसी बन जाती है कि वे चाहकर भी कुछ • २५० - -- आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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