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विश्वास कौन करता? सबको भ्रम होता कि चाचा ने भतीजे को ठग लिया है। रत्न तो चालाकी से अपने पास रख लिए हैं और उनके स्थान पर कांच के टुकड़े रख दिए हैं। लेकिन अब चूंकि तुम स्वयं परीक्षक बन चुके हो, इसलिए मुझे कुछ भी कहने की अपेक्षा नहीं रही। सारी स्थिति स्वतः स्पष्ट हो गई।
यह एक कहानी है, पर इसमें एक बहुत बड़ा मर्म छिपा है। असली और नकली का विवेक हो जाने के पश्चात भी नकली को पकड़े रहना दुराग्रह है, मूर्खता है। समझदारी इसी में है कि विवेक होने के साथ ही व्यक्ति नकली चीज छोड़ दे और असली ग्रहण कर ले, गलत तत्त्व छिटका दे और सही तत्त्व अपना ले।
असली और नकली, अच्छे और बुरे का यह विवेक ज्ञान द्वारा प्राप्त होता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान-प्राप्ति के लिए सजग रहना चाहिए। ज्ञान के पश्चात दर्शन का स्थान है और उसके बाद चरित्र का। इन तीनों की सम्यक आराधना करनेवाला मोक्ष को प्राप्त होता है। हम सबका अंतिम लक्ष्य मोक्ष ही है। इसलिए हम कदम-कदम इस दिशा में आगे बढ़ते रहें। ध्यान रहे, सही दिशा में बढ़नेवाले चरण देर-सवेर अपने लक्ष्य पर असंदिग्ध रूप में पहुंचते हैं।
पद्मपुर २५ अप्रैल १९६६
अच्छे और बुरे का विवेक
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