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३९ : जाग्रति : क्यों : कैसे
जैन-धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने सूत्रकृतांग सूत्र में संसार को उद्बोध देते हुए कहा है
संबुज्झह किण्ण बुज्झहा, संबोही खलु पेच्च दुल्लहा। णो एवणमंति राइओ, णो सुलभं पुणरावि जीवियं। - प्राणियो! जागो। तुम क्यों नहीं जाग रहे हो ? जागना अच्छा नहीं
मानते या और कोई दूसरा कारण है? तुम याद रखो, जो वर्तमान में नहीं जागता, उसे अगले जन्म में भी यह आध्यात्मिक जाग्रति दुर्लभ हो जाती है। बीती हुई रातें लौटकर नहीं आतीं। जीवन-सूत्र
के टूट जाने के पश्चात उसे पुनः सांधना संभव नहीं है। भगवान महावीर का पुनर्जन्म के सिद्धांत में संपूर्ण विश्वास था, इसलिए उन्होंने कहा कि यहां नहीं जागे तो आगे भी बोधि प्राप्त नहीं हो सकेगी। कई व्यक्ति पुनर्जन्म का सिद्धांत नहीं मानते, अतः वे आगे की चिंता नहीं करते, लेकिन जिनकी इसमें आस्था है, वे अनागत के प्रति उदासीन नहीं रह सकते। जीवन : लक्ष्य और गति
__ यह एक चिंतनीय प्रश्न है कि हम जो जीवन जी रहे हैं, उसका लक्ष्य क्या है; हम क्या चाहते हैं। निर्लक्ष्य तो एक मंद प्राणी भी नहीं चलता। इसलिए यदि हमारा लक्ष्य सुख-प्राप्ति और दुःख-मुक्ति है तो उसे पाने के लिए प्रयास होता है या नहीं, यह भी चिंतनीय है। लक्ष्य के निर्धारण और उसकी प्राप्ति के प्रयास के बिना कोई व्यक्ति सुखी नहीं हो सकता। ___आज मनुष्य दुखी है, अशांत है। ऐसा क्यों? मेरी दृष्टि में इसके दो ही कारण हो सकते हैं। या तो मनुष्य का लक्ष्य सही नहीं है, स्थिर नहीं है या फिर उसकी सही और स्थिर लक्ष्य की दिशा में गति नहीं है। दोनों में से एक कारण अवश्य होना चाहिए, अन्यथा दुःख और • २४८ .
- आगे की सुधि लेइ
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