________________
गया। उसकी परिस्थिति समझकर उसके मन में उसके प्रति सहानुभूति भी पैदा हो गई। दयार्द्र होकर उसने कहा- 'मैं तुम्हारी सत्यवादिता पर प्रसन्न हूं। तुम जो कुछ चाहो, वह मांग लो। तुम्हारी इच्छा मैं पूरी करूंगा।' राजा की बात सुनकर कपिल के पैरों में घुंघरू बंध गए। वह मन-ही-मन दासकन्या को धन्यवाद देने लगा। लेकिन 'क्या मांगू' इस बिंदु पर उसका दिमाग उलझ गया। उसने राजा से निवेदन किया- 'मुझे सोचने के लिए कुछ समय दीजिए।' राजा ने कहा- 'अच्छा, तुम सोचकर बता दो।' आज्ञा लेकर कपिल राजा की अशोक वाटिका में चला गया और खड़ा खड़ा सोचने लगा कि राजा जब मेरे पर तुष्ट है, तब दो माशा सोना ही क्यों मांगूं; दो से होगा भी क्या क्यों न चार माशा मांग लूं; पर उतने से भी क्या होगा; आधा तो दासी - महोत्सव में ही खर्च हो जाएगा; शेष दो माशा कुछ दिन खाने में पूरा हो जाएगा, कपड़े फटे हुए हैं, उनकी व्यवस्था कैसे होगी; मकान भी तो बनवानी है ' "अच्छा है, बीस माशा मांग लूं। यों वह बढ़ता गया, बढ़ता गया और इस क्रम में उसकी आकांक्षा आधा राज्य मांगने तक पहुंच गई। पर उसे यहां भी विराम कहां था ! वह और आगे बढ़ी - क्यों न पूरा राज्य ही मांग लूं और राजा को संन्यासी बनने का कह दूं । मैं राजा होकर आस-पास के राज्य और जीत लूंगा। इस संसार में मेरा
एकछत्र
उधर राजा उसकी प्रतीक्षा में था। घंटों का समय बीत गया, तथापि वह नहीं लौटा तो उसकी खबर करने के लिए उसने अपने अनुचरों को भेजा। वे वाटिका में पहुंचे। उन्होंने कपिल से कहा - ' महाराज तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।' कपिल बोला- 'अभी थोड़ी देर और ठहरो । मैं अब तक पूरा सोच नहीं पाया हूं, सोच ही रहा हूं।'
लालसा के शिखर पर पहुंचकर कपिल मुड़ा - कहां मैं दो माशा सोना प्राप्त करने के लिए घर से चला था और कहां पूरा राज्य ही मांगने के लिए उद्यत हो गया ! रे कपिल ! तुझ जैसा भी कोई अधम होगा ! राजपुरुषों द्वारा चोर के रूप में परिचय कराए जाने के बाद भी राजा ने दयार्द्र बनकर तुझसे इच्छित मांगने को कहा। इस अनुग्रह का यह बदला ! इतनी कृतघ्नता ! और वह भी उस दासकन्या के कारण ! उस प्रिया के कारण! कौन किसकी प्रिया ! कौन किसका प्रिय ! कौन-सा घर ! यह सारा मायाजाल है । चला था विद्याध्ययन के लिए और कहां फंस गया इस
शांति का सही मार्ग
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
९०
www.jainelibrary.org