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________________ और यह मेंढा कुछ भी नहीं देता, फिर भी इसे इतनी अच्छी-अच्छी चीजें! यह कहां का न्याय! उसका खून खौल उठा। उसने यह बात अपनी मां को बताते हुए कहा-'मां! यह अन्याय मैं सहन नहीं कर सकता।' गौ ने बछड़े को समझाते हुए कहा-'अधीर मत बन। कुछ दिन प्रतीक्षा कर। तेरी भावना के अनुरूप न्याय हो जाएगा।' पंद्रह-बीस दिन बीते होंगे कि बछड़े ने फिर इस अन्याय की चर्चा करते हुए उसके प्रतिकार की बात कही, पर गौ ने धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने की बात दुहराकर पुनः उसे शांत कर दिया। एक-एक दिन बीतते डेढ़-दो माह का समय और बीत गया। बछड़ा मेंढे को रोज अच्छे-अच्छे पदार्थ खाते देखता और उसके भावों में उत्तेजना सुलगने लगती, पर मां की बात ध्यान में रखता हुआ वह शांत रहता। .... और एक दिन उसने देखा, मेंढे को अच्छी-अच्छी चीजें खिलानेवाला घर का स्वामी ही एक चमचमाती तलवार लेकर उधर आया है। वह एकदम चौंका। गौ ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा-'वत्स ! तू चौंक मत। जो गटका खाएगा, वही झटका खाएगा। हमने गटका नहीं खाया है तो हमें घबराने की किंचित भी जरूरत नहीं है।.......' तभी बछड़े ने देखा, वह चमचमाती तलवार मेंढ़े की गर्दन पर पड़ी और वह में-में..... करता हुआ जमीन पर ढेर हो गया। गौ ने कहा-'वत्स! आज तुझे मेरी बात समझ में आ गई होगी। देर हो सकती है, पर अंधेर नहीं है। जिसने मुफ्त में माल उड़ाया, उसे उसका फल मिल गया।' अणुव्रत की अपेक्षा और उपयोगिता बंधुओ! मैं यह कहानी इस परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करना चाहता हूं कि जो व्यक्ति अच्छा जीवन जीता है, चरित्रनिष्ठ और नैतिक रहता है, उसकी देर-सवेर स्वयं कीमत आंकी जाती है। यह सोचना भयंकर भूल है कि लोग उसका सही मूल्यांकन नहीं करते, उसे सही प्रतिष्ठा नहीं देते, पर इसके साथ ही इतना और कहना चाहता हूं कि व्यक्ति की स्वयं की आकांक्षा यह नहीं होनी चाहिए। वह तो स्वयं की आस्था के लिए ही सच्चरित्र बने, स्वयं के आत्मतोष के लिए ही नैतिक बने, स्वयं के आनंद के लिए ही सदाचारी बने। वस्तुतः सच्चरित्र, नैतिक और सदाचारी बनने में जो आत्मतोष और आत्मिक आह्लाद मिलता है, उसकी संसार के किसी पदार्थ से तुलना नहीं की जा सकती। गोस्वामीजी ने कहा है • २३६ - - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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