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________________ तात ! स्वर्ग अपवर्ग सुख, धरहि तुला इक अंग । तुलै न ताहि सकल मिलि, जो सुख लव सत्संग ।। अणुव्रत जन-जन को सच्चरित्र बनाने का कार्यक्रम है, जन-जन को नैतिकता और प्रामाणिकता के सांचे में ढालने का उपक्रम है, युगधारा को सदाचार की दिशा में मोड़ने का पुरुषार्थ है । इसलिए मैं जहां भी जाता हूं, वहां अणुव्रत की चर्चा करता हूं। इसके छोटे-छोटे संकल्प स्वीकार करने की प्रेरणा देता हूं। कुछ लोगों को ऐसा भी लगता है कि आचार्यजी तो रोजाना एक ही बात कहते हैं। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि वे अघाते क्यों हैं; वे रोटी रोजाना खाते हैं या नहीं; जब शरीर की क्षुधा मिटाने के लिए रोजाना रोटी खाना आवश्यक है तो बुराइयां मिटाने के लिए अणुव्रत की बार-बार चर्चा करना अनावश्यक कैसे हो सकता है। मेरी दृष्टि से यह बहुत जरूरी है, अन्यथा समाज स्वस्थ कैसे बन सकेगा ? चरित्र, नैतिकता, सदाचार आदि की पुनः प्रतिष्ठा कैसे हो सकेगी ? इसलिए मैं सभी लोगों से कहना चाहता हूं कि वे चरित्र / नैतिकता / सदाचार के इस कार्यक्रम की आवश्यकता और उपयोगिता समझें। समझकर स्वयं अणुव्रती बनें और दूसरों को इस दिशा में प्रेरित करें। इससे उनका स्वयं का हित तो होगा ही होगा, समाज और राष्ट्र का भी भला हो सकेगा । पद्मपुर २४ अप्रैल १९६६ सच्चरित्र क्यों बनें Jain Education International For Private & Personal Use Only २३७ • www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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