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________________ है। जिस व्यक्ति की आस्था सही है, उसके सच्चरित्र बनने की संभावना बनी रहती है, पर जो इस तत्त्व के प्रति आस्था ही नहीं रखता, उसे गलत समझता है, उसके सुधरने की संभावना क्षीणप्रायः रहती है। इसलिए अपेक्षा इस बात की है कि सबसे पहले चरित्र के प्रति सही आस्था का निर्माण हो। सही आस्था के निर्माण के पश्चात उसे व्यावहारिक धरातल पर लाने का कार्य सरल हो जाएगा। सच्चरित्र बनने का अभिप्रेत कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं, जो सच्चरित्र बनकर जीना तो पसंद करते हैं, पर साथ-ही-साथ उसका सामाजिक मूल्यांकन भी चाहते हैं, अन्यथा उन्हें अपनी सच्चरित्रता सार्थक प्रतीत नहीं होती। पिछले ही दिनों एक व्यक्ति मेरे पास आया और बोला-'आचार्यजी! आप लोगों को सच्चरित्र और नैतिक बनने का उपदेश देते हैं, लेकिन मेरी दृष्टि में आज के युग में सच्चरित्र बनना व्यर्थ है, नैतिक जीवन जीना मूर्खता है, क्योंकि सच्चरित्र और नैतिक व्यक्ति की समाज में कोई कीमत नहीं है, उसे कोई प्रतिष्ठा नहीं देता।' मैंने उस भाई को समझाते हुए कहा-'किसी व्यक्ति के सच्चरित्र या नैतिक बनने का यह अर्थ नहीं कि दुनिया उसकी कीमत आंके। दुनिया की प्रतिष्ठा/ सम्मान पाने के लिए यदि सच्चरित्र या नैतिक बना जाता है तो मेरी दृष्टि में यह कोई बहुत महत्त्व की बात नहीं है, बल्कि बहुत हलकी बात है। एक दृष्टि से वह व्यर्थता की कोटि में आ जाती है। वस्तुतः व्यक्ति को सच्चरित्र बनना चाहिए अपनी आस्था के लिए, अपने आत्मतोष के लिए। सच्चरित्र बनना जीवन की सार्थकता है इस आस्था के साथ जब व्यक्ति सच्चरित्र बनता है, तब उसे सहज ही एक प्रकार का अनिर्वचनीय आत्मतोष मिलता है। फिर वह इस बात की कोई चिंता ही नहीं करता कि लोग उसका उचित मूल्यांकन करते हैं या नहीं, उसे सामाजिक सम्मान/प्रतिष्ठा मिलती है या नहीं। हालांकि जो सच्चरित्र होता है, उसे देर-सवेर स्वयं प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, लोग उसे आदर देते हैं, तथापि यह बहुत गौण बात है। मुख्य बात है-स्वयं की आस्था, स्वयं का आत्मसंतोष।' जो गटका खाएगा, वही झटका खाएगा बछड़े ने देखा, मेंढ़े को घी, हलवा आदि अच्छी-अच्छी चीजें खाने को दी जाती हैं। उसके मन में विचार आया कि रोजाना मीठा और पौष्टिक दूध देनेवाली मेरी माता को तो घास और जूठा पानी मिलता है सच्चरित्र क्यों बनें -२३५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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