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________________ महानता की कसौटी चरित्र जीवन का सारभूत तत्त्व है। जिस व्यक्ति का चरित्र जितना ऊंचा / उज्ज्वल / निर्मल होता है, वह उतना ही महान होता है। किसी कुलविशेष से पैदा होने से कोई अपने-आपको भले ऊंचा माने, पर मेरी दृष्टि में उच्चता / महानता की कसौटी व्यक्ति का चरित्र ही है। नैतिकता, प्रामाणिकता, सदाचार आदि उसी चरित्र का प्रतिनिधित्व करनेवाली बातें हैं। भारतीय लोगों का चरित्र किसी समय विश्व के लिए आदर्श था । संसार के लोग उनसे चरित्र की शिक्षा लेने आते थे। पर आज स्थिति बदल गई है। नैतिकता, प्रामाणिकता, सदाचार की दृष्टि से भारतीय जनता अपनी वह प्रतिष्ठा खो चुकी है, पर इसका अर्थ यह नहीं है कि भारतवर्ष से नैतिकता, प्रामाणिकता, सदाचार का नाम उठ ही गया है। आज भी ऐसे व्यक्ति देखने को मिलते हैं, जिनकी न केवल सच्चरित्र, नैतिकता, प्रामाणिकता में अटूट आस्था है, अपितु वे हजार कठिनाइयां झेलकर भी उनकी टेक नहीं छोड़ते। पर इतना स्पष्ट है कि ऐसे लोगों की संख्या कम है । बड़ी संख्या उन लोगों की है, जो चरित्र का यथार्थ मूल्यांकन नहीं करते। इनमें भी दो तरह के लोग हैं। प्रथम कोटि में वे लोग हैं, जो सच्चरित्र के प्रति अनास्थाशील तो नहीं हैं, पर कठिनाइयों से घबरा जाते हैं। इस कारण वे अपना चरित्र बेदाग नहीं रख पाते। दूसरी कोटि उन लोगों की है, जो चरित्र को जीवन के लिए कोई आवश्यक तत्त्व ही नहीं समझते। उसके प्रति उनके मन में कोई निष्ठा ही नहीं है। ऐसी स्थिति में विशेष कठिनाई न होने के बावजूद वे असदाचार का सेवन कर लेते हैं। हालांकि असदाचार का सेवन दोनों ही स्थितियों में अच्छा नहीं है, तथापि मैं दूसरी कोटि के लोगों को अधिक गलत समझता हूं। चरित्र के प्रति अनास्था गलत आचरण से भी ज्यादा घातक तत्त्व आगे की सुधि लेइ • २३४ ३७ : सच्चरित्र क्यों बनें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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