SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फूटा-'जंबूकुमार!' किसी अन्य पुरुष का शब्द सुनकर आठों ही नवोढ़ाएं एकदम चौंकीं। जंबू भी चौंका। बोला-'कौन है?' जंबू के इस प्रश्न के साथ ही प्रभव एकदम सामने आ गया। जंबू ने पूछा-'कौन हो? क्यों आए हो?' प्रभव बोला-'मैं सारी बात बताऊंगा, पहले हमें संकट से बचाएं।' जंबू ने साश्चर्य पूछा-'कैसा संकट?' प्रभव बोला-'आप तो अंतर्यामी हैं। फिर आपको मैं क्या बताऊं? मेरे चार सौ निन्यानबे अनुचरों के हाथ-पैर चिपक गए हैं। आप अनुग्रह करके हमारा संकट-मोचन करें। मैं आपको अवस्वापिनी और तालोद्घाटिनी दो विद्याएं समर्पित करता हूं। आप मुझे यह विद्या प्रदान करें।' जंबूकुमार ने कहा-'ये सब विद्याएं धोखा हैं। सच्ची विद्या एक ही है-वैराग्य। उसे प्राप्त करने के पश्चात और कुछ भी पाने की चाह समाप्त हो जाएगी, जीवन सार्थक हो जाएगा।' प्रभव ने कहा-'मैं आपकी बात पर गंभीरता से चिंतन करूंगा, पहले आप शीघ्रता से मेरे अनुचरों को संकट से छुड़ाएं।' जंबू ने कहा-'नहीं, पहले तुम यह जघन्य वृत्ति छोड़कर संयम-पथ पर अग्रसर होने के लिए संकल्पित हो।' ऐसा कहते हुए जंबूकुमार ने उसे मार्मिक उद्बोधन दिया। संसार की नश्वरता का बोध करवाया। प्रभव जंबूकुमार के व्यक्तित्व से पहले से ही प्रभावित था, अब उसके उपदेश ने और काम किया। वह जंबू की बात मानकर दीक्षा लेने के लिए तैयार हो गया। ___ बस, सभी चार सौ निन्यानबे चोर मुक्त हो गए। प्रभव ने उन्हें भी संयम-जीवन का मूल्य समझाया। वे भी दीक्षा के लिए अपने स्वामी के साथ तैयार हो गए। इधर जंबूकुमार ने अपने माता-पिता को समझाया तथा आठों पत्नियों ने अपने-अपने माता-पिता को। सब दीक्षा ग्रहण करने के लिए उपस्थित हो गए। इस प्रकार जंबू, प्रभव आदि पांच सौ सत्ताईस व्यक्तियों ने एक साथ संयम स्वीकार किया। संयम स्वीकार करते ही सब वंदनीय बन गए, लोगों की दृष्टि में सम्माननीय बन गए, प्रतिष्ठित बन गए। और तो क्या, प्रभव-जैसा कुख्यात चोर भी वंदनीय-सम्माननीय बन गया, साहूकार बन गया। यह संयम का चमत्कार है, त्याग और असंग्रह का चमत्कार है, अनाकांक्षा का चमत्कार है। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में भारतवर्ष में लोग अपने-अपने मकान के ताले नहीं लगाते थे। क्यों नहीं लगाते थे? क्या चोर नहीं थे? • २२६ - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy