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________________ जन का आकर्षण केंद्र बन सकता है, जो जाग्रत है। आप पूछेंगे कि जाग्रत धर्म की पहचान क्या है । जाग्रत धर्म की पहचान बहुत सीधी-सी है। जो धर्म वर्तमान क्षण में व्यक्ति को सुख और शांति की अनुभूति करा सके, वह जाग्रत धर्म है । पुण्य-पाप : अमीरी-गरीबी बहुत-से लोगों ने अपने मन में इस प्रकार की धारणा पाल रखी है कि धर्म से व्यक्ति को धन आदि भौतिक सुख के साधन प्राप्त होते हैं। अमीरी पुण्य का फल है और गरीबी पाप का । लेकिन आज का जनमानस यह बात स्वीकार नहीं कर सकता, बल्कि बर्दास्त भी नहीं कर सकता । इसलिए स्थान-स्थान पर कानून के द्वारा इस पुण्य-पापजन्य अमीरी-गरीबी को खत्म करने का प्रयास हो रहा हैं। अनेक देशों में रक्त क्रांतियां हुई हैं। सैनिक क्रांतियां भी हो रही हैं। साम्यवादी शासनप्रणाली लागू करके पुण्यपाप की जड़ें उखाड़ने का प्रयत्न हो रहा है। इस संदर्भ में मेरा अभिमत बहुत स्पष्ट है। पुण्य और पाप दोनों अमीरी और गरीबी के निमित्त कारण तो हो सकते हैं, पर ये मूल कारण नहीं हैं। यदि पुण्योदय ही अमीरी का कारण हो और पापोदय ही गरीबी का कारण हो तो क्या अमेरिका में सब पुण्यात्मा ही हैं ? क्या भारतवर्ष में पैदा होनेवाले सब पापात्मा ही हैं ? जहां साम्यवाद आ गया है, क्या वहां पाप की प्रकृति समाप्त हो गई है ? नहीं, ऐसा कभी संभव नहीं है। वस्तुतः अमीरी में सबसे बड़ा हाथ है - पुरुषार्थ का । पुरुषार्थी व्यक्ति अपने भाग्य को जगा लेता है और अकर्मण्य व्यक्ति जागे भाग्य को भी गहरी नींद में सुला देता है। आप यह बात गंभीरता से समझने का प्रयत्न करें कि अमीर बनना पुण्योदय नहीं है और निर्धन होना पापोदय नहीं है। यदि गरीब होना पाप का उदय है तो क्या सबसे अधिक पापोदय साधु-संतों के नहीं होगा ? हमारे पास धन के नाम पर अकिंचनता के सिवा और कुछ भी नहीं है। चार अंगुल जमीन और दो पैसे की पूंजी भी नहीं है । इसी प्रकार अमीरी को यदि पुण्योदय माना जाए तो क्या दुष्प्रवृत्तियों में आकंठ डूबे रहनेवाले चोर, लुटेरे, वेश्याएं आदि व्यक्ति बहुत बड़े पुण्यात्मा नहीं कहलाएंगे ? उनके पास विपुल धनराशि होती है। इससे भी आगे, रक्त-क्रांति के द्वारा सत्ता हथियानेवालों को भी पुण्यात्मा क्यों नहीं आगे की सुधि लेइ २०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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