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________________ माना जाए ? इस माध्यम से वे भी अपनी गरीबी मिटा लेते हैं। लेकिन कोई समझदार व्यक्ति ऐसा नहीं मान सकता। इसलिए मैंने कहा कि अमीरीगरीबी में मुख्य हाथ अपनी कर्मण्यता और अकर्मण्यता का है । अमीरी-गरीबी दोनों अभिशाप हैं अधिकतर लोग अमीरी को अच्छा समझते हैं और गरीबी को बुरा, पर मेरे चिंतन में ये दोनों ही अभिशाप हैं। धन का अतिभाव प्रायः व्यक्ति को विलास की ओर ढकेल देता है। परिणामतः उसका खान-पान शुद्ध नहीं रहता, रहन-सहन बिगड़ जाता है। अनेक प्रकार के व्यसन उसके जीवन में घर कर जाते हैं। इसी प्रकार धन का अति अभाव व्यक्ति के मन में हीन भावना भर देता है। वह अपने भाग्य को कोसने लगता है। अपनी जिंदगी उसे भारभूत लगने लगती है। इसलिए ये दोनों ही स्थितियां व्यक्ति के लिए सुख और शांति का आधार नहीं बनतीं । सुख और शांति का आधार आप पूछेंगे कि फिर सुख और शांति का आधार क्या है । सुख और शांति का आधार है -त्याग । व्यक्ति के जीवन में ज्यों-ज्यों त्याग और संयम के फूल खिलते हैं, त्यों-त्यों उसका जीवन सुख और शांति से महकने लगता है। आज आपके समक्ष यह एक बहिन त्याग और संयम के पथ पर बढ़ने के लिए उपस्थित है। वस्तुतः यह प्रयाण सुख और शांति की दिशा में प्रयाण है, पर बड़ी कठिनाई यह है कि लोग इस सचाई को नहीं देखते। उन्हें तो ऐसा लगता है कि दीक्षा स्वीकार करके यह अपने सिर पर कांटों का ताज पहन रही है । यद्यपि मैं भी मानता हूं कि व्यक्ति को साधु-जीवन में चर्या के कई प्रकार के कष्ट सहन करने पड़ते हैं, तथापि गृहस्थ जीवन के कष्टों के सामने वे कष्ट नगण्य हैं। पर लोगों का ध्यान साधु-जीवन के कष्टों की ओर जाता है, अपने कष्टों की ओर नहीं। टॉलस्टाय ने -' ईसा की सूली की चर्चा सब करते हैं, पर गृहस्थ जीवन में हर व्यक्ति हर रोज सूली पर चढ़ता है, फिर उसकी चर्चा क्यों नहीं करते ?' इसका कारण बताते हुए उन्होंने आगे कहा - ' ईसा सूली पर चढ़े प्रभु के नाम पर और गृहस्थ सूली पर चढ़ता है अपनी वासना के लिए, अपने स्वार्थ के लिए।' मैं मानता हूं, टॉलस्टाय के इस कथन में एक गूढ़ सचाई है। इस बहन ने यह सचाई समझी है। इसलिए यह साधु-जीवन के कष्टों से सुपरिचित होकर भी इसे स्वीकार करने के लिए कृतसंकल्प है। बंधुओ ! कहा-' दीक्षा : सुख और शांति की दिशा में प्रयाण Jain Education International For Private & Personal Use Only २०५ • www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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