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________________ आना तो बहुत स्वाभाविक है। अच्छी चीज का मिलना सहज कहां है ? कठिनाइयों के साथ ही वह जुड़ी हुई होती है, पर कठिनाइयां सहन करके भी यदि वह मिलती है तो भी यह व्यक्ति के लिए बहुत लाभ का सौदा है। पूछा जा सकता है कि कठिनाइयां / कष्ट सहन करने में क्या दूसरों का सहयोग प्राप्त नहीं हो सकता। दूसरों का सहयोग प्राप्त नहीं हो सकता, ऐसा मैं नहीं कहता, पर इतना अवश्य कहता हूं कि व्यक्ति को दूसरों के सहयोग पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। अपनी शक्ति को ही आधार मानकर चलना चाहिए। भगवान महावीर का उदाहरण आपके सामने है। उन्होंने साधना का कठिन पथ स्वीकार किया। पहले दिन ही उन्हें भयंकर कष्ट सहन करना पड़ा। उनका कष्ट देखकर इंद्र उपस्थित हुआ और बोला- 'प्रभो! लोग जड़ हैं। आपकी विशिष्ट साधना से अनजान हैं। इसलिए वे आपको नानाविध कष्ट देंगे। अतः आपकी आज्ञा हो तो मैं आपकी सेवा में रहूं और आपके कष्ट दूर करता रहूं।' क्या आप जानते हैं कि इस पर भगवान महावीर ने इंद्र से क्या कहा ? भगवान महावीर ने कहा- 'इंद्र ! न तो अतीत में कभी ऐसा हुआ है और न भविष्य में कभी ऐसा संभव है । जितने भी तीर्थंकर होते हैं, वे अपनी शक्ति और सामर्थ्य के आधार पर ही साधना करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुंचते हैं। वे दूसरों के सहयोग पर आधारित रहकर साधना नहीं करते। मुझे भी इसी तरह आगे बढ़ना है। साधना पथ में जो कष्ट आएंगे, उन्हें मैं समता से सहन करूंगा और लक्ष्य तक पहुंचूंगा।' भरोसा स्वयं का ही करें बंधुओ ! आपको भी यह दृष्टि सामने रखकर आगे बढ़ना है। दूसरे लोग आपके पथ में सहयोगी बन सकते हैं, पर आपको उनके सहयोग पर आधारित नहीं रहना है। आपको तो अपनी आत्म-शक्ति का ही भरोसा करना है । मैं मानता हूं, यह दृष्टिकोण जब सामने रहेगा तो अणुव्रत - पथ पर बढ़ते समय आनेवाली कठिनाइयां आपको पराभूत नहीं कर सकेंगी। आप हंसते-हंसते उन्हें पार कर जाएंगे। अनुरागाद् विरागः आज के जन-मानस में भ्रष्टाचार, अनैतिकता तथा विभिन्न दुर्व्यसनों ने जिस प्रकार अपनी जड़ें जमाई हैं, उन्हें देखकर बहुत से प्रबुद्ध लोग अत्यंत चिंतित हैं। जब-तब वे अपनी चिंता सार्वजनिक मंचों पर अभिव्यक्त सुख और शांति का मार्ग १९९ • Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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