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स्थिति से निपटने में सर्वथा सक्षम है। इसके छोटे-छोटे नियम स्वीकार कर मनुष्य सुखी हो सकता है, शांति का अनुभव कर सकता है, देवता बन सकता है। देवता और राक्षस कहां
राक्षस बनने और देवता बनने की जो बात मैंने कही, उसके पीछे मेरी अपेक्षा आप समझते ही होंगे। राक्षस और देवता दोनों मनुष्य से भिन्न नहीं हैं। ये मनुष्य की ही दो अवस्थाएं हैं। हर मनुष्य के अंतर में राक्षस और देवता-दोनों होते हैं। जब-जब मनुष्य बुराइयों में प्रवृत्त होता है, तामसिक वृत्तियां उस पर प्रभावी होती हैं, मानना चाहिए कि तब-तब उसके अंतर का राक्षस जाग जाता है, वह राक्षस बन जाता है। ठीक इसके विपरीत जब-जब वह सत्प्रवृत्त होता है, सात्त्विकता उस पर प्रभावी होती है, तब-तब वह देवता बन जाता है। यह राक्षस और देवता बनने की बात मनुष्य के हाथ का ही खेल है। वह राक्षस भी बन सकता है और देवता भी बन सकता है। यह चुनाव उसे ही करना होता है कि उसे राक्षस बनना है या देवता। सीधी-सी भाषा में कहूं तो राक्षस बनने का अर्थ है-बुरा आदमी बनना और देवता बनने का अर्थ है-अच्छा आदमी बनना। अणुव्रत : अच्छे आदमी की आचार-संहिता
अणुव्रत आदमी को अच्छा आदमी बनाने की प्रक्रिया है। उसकी आचार-संहिता अच्छे आदमी की आचार-संहिता है। कोई व्यक्ति, चाहे वह किसी जाति, वर्ण, वर्ग, संप्रदाय से संबद्ध क्यों न हो, अणुव्रत की आचार-संहिता स्वीकार कर सही अर्थ में मनुष्य कहलाने का गौरव प्राप्त कर सकता है, अपना आचरण और व्यवहार मनुष्यता के धरातल पर प्रतिष्ठित कर सकता है।
अणुव्रत का यह कार्यक्रम लेकर मैं ढाणी-ढाणी, ग्राम-ग्राम, शहरशहर जाता हूं और आदमी को आदमीयता की राह पकड़ाने की चेष्टा करता हूं। मैं देखता हूं, अणुव्रत की बात पसंद तो लगभग सभी लोग करते हैं, पर अपनाने में बहुत-से हिचकिचाते हैं। उन्हें अणुव्रत का मार्ग कठिनाइयों से भरा-पूरा दिखाई देता है। एक सीमा तक उनका अनुमान गलत नहीं है। अणुव्रत के पथ पर बढ़नेवाले के समक्ष अनेक प्रकार की कठिनाइयों का आना असंभावित नहीं है, पर मैं पूछना चाहता हूं कि कठिनाइयां किस मार्ग में नहीं आतीं। फिर अच्छे मार्ग में कठिनाइयों का
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- आगे की सुधि लेइ
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