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जाएंगे, वहां लोगों को बिगाड़ेंगे। इसलिए उनका बिखरना बिलकुल भी अच्छा नहीं है। वे तो एक ही जगह बस जाएं तो ठीक है। इससे दूसरेदूसरे गांवों के लोग तो बिगड़ने से बच जाएंगे। दूसरे गांव के लोगों से मैंने उजड़ जाने के लिए कहा। इसके पीछे अपेक्षा यह है कि उस गांव के लोग बहुत भले हैं, सुसंस्कारी हैं। वे लोग एक जगह रहेंगे तो दूसरे लोगों को सुसंस्कारी नहीं बना पाएंगे। अतः उनका तो उजड़ जाना यानी बिखर जाना ही श्रेयस्कर है। वे लोग जितने अधिक उजड़ेंगे-बिखरेंगे, उतने अधिक क्षेत्रों के लोगों को सुसंस्कारी बनाएंगे।'
छात्रों के लिए मैं यही बात कह रहा था। वे सुसंस्कारी होकर जब बिखरेंगे तो बहुत लाभ होगा। वे जहां भी जाएंगे, वहां सुसंस्कारों का वातावरण निर्मित करेंगे। अध्यापकों के लिए भी तो यही बात है। अच्छे अध्यापक जितने अधिक बिखरते हैं, समाज का उतना ही हित होता है।
__आज चारों तरफ नव-निर्माण की चर्चा है। मैं मानता हूं, व्यक्तिनिर्माण से बढ़कर और कोई निर्माण नहीं है। फिर इस व्यक्ति-निर्माण में भी विद्यार्थियों और अध्यापकों का निर्माण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि विद्यार्थी ही राष्ट्र के भावी कर्णधार होते हैं, तस्वीर होते हैं। उनका जीवन जितना अधिक सुसंस्कारी होता है, राष्ट्र का भविष्य उतना ही उज्ज्वल बनता है, तस्वीर उतनी ही सुंदर बनती है; और इन विद्यार्थियों का बहुतकुछ निर्माण अध्यापकों के निर्माण पर निर्भर करता है। इस अपेक्षा से मैं इन दोनों वर्गों के निर्माण पर सर्वाधिक बल देता हूं।
श्रीगंगानगर ५ अप्रैल १९६६
विद्याध्ययन : क्यों और कैसे
१९५.
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