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________________ करता रहा है। अणुव्रत के छोटे-छोटे संकल्प विद्यार्थियों का जीवन नैतिकता और प्रामाणिकता के सांचे में ढालते हैं। इस सांचे में ढलकर विद्यार्थी अपने जीवन का सही ढंग से निर्माण कर सकते हैं। जिस प्रकार जलता हुआ एक दीप सैकड़ों नए दीप जला सकता है, उसी प्रकार एक सुसंस्कारी विद्यार्थी सैकड़ों-सैकड़ों विद्यार्थियों में सुसंस्कार जगा सकता है। इस अपेक्षा से प्रारंभ में यदि थोड़े विद्यार्थी भी सुसंस्कारी बनते हैं तो आगे चलकर बहुत काम हो सकता है। मैं आशा करता हूं कि हमारे विद्यार्थी अणुव्रत के पथ पर आगे बढ़ते हुए अपना निर्माण करेंगे। यह बहत स्पष्ट है कि विद्यार्थीकाल संपन्न होने के साथ ही हमारे ये विद्यार्थी बिखर जाएंगे, क्योंकि हर विद्यार्थी का कार्यक्षेत्र अलग होगा। एक दृष्टि से इनका बिखरना बहुत अच्छा होगा। सुसंस्कारित व्यक्ति जितने अधिक बिखरते हैं, उतना ही समाज और राष्ट्र का हित होता है। प्रसंग गुरु नानक का गुरु नानक की बात मुझे याद आ गई। एक गांव में उनका जाना हुआ। वहां उनका स्वागत तो बहुत दूर, प्रत्युत उन्हें लोगों की गालियां मिलीं, दुतकार मिला, अपमान मिला। पर इतने पर भी बात समाप्त नहीं हुई। उन्हें गांव से भी निकाल दिया गया। गुरु नानक ने जाते-जाते ग्रामवासियों को संबोधित करके कहा-'तुम लोग आबाद हो जाओ।' वहां से नानक किसी दूसरे गांव के लिए रवाना हुए। उस गांव के लोगों को खबर लगी और वे अगवानी करने के लिए आए। उन्होंने गुरु नानक का खूब स्वागत किया, सम्मान किया और उपयुक्त स्थान पर ठहराया। जब नानक वहां से विदा होने लगे तो लोगों ने आशीर्वाद देने के लिए कहा। गुरु नानक ने कहा-'तुम सब उजड़ जाओ।' गुरु नानक के साथ कुछ भक्त भी थे। नानक का आज का यह व्यवहार उन्हें गहरी हैरानी में डालनेवाला था। थोड़ी हिम्मत जुटाकर एक व्यक्ति ने पूछ ही लिया-'दुष्ट व्यक्तियों को तो आप आबाद होने का आशीर्वाद देते हैं और सज्जन व्यक्तियों को उजड़ने की दुराशीष ! यह उलटी बात क्यों?' ___ नानक ने कहा-'यह उलटी बात नहीं हैं, बिलकुल सुलटी है, सही है। तुम इसका रहस्य नहीं समझ पाए। देखो, पहले गांव के लोगों से मैंने आबाद होने की बात कही, क्योंकि ऐसे अभद्र प्रकृति के लोग जहां-कहीं • १९४ आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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