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________________ की अपेक्षा है। वे जो-कुछ पढ़ते हैं, उसे अपने जीवन में उतारें। जो तत्त्व जीवन में, जीवन के व्यवहार और आचरण में नहीं उतरता, वह पढ़ा हुआ नहीं गिना जाता। पाठ तो तोता भी रट लेता है, पर उससे उसका कोई हित नहीं सधता। विद्यार्थी भी केवल शाब्दिक स्तर पर पाठ याद कर अपना हित नहीं साध सकते। पाठ जीवनगत होने से ही हित संपादित होता है। प्रसंग युधिष्ठिर का पांडवों और कौरवों का गुरु द्रोणाचार्य के सान्निध्य में अध्ययन चल रहा था। एक दिन उन्होंने पाठ दिया-क्रोधं मा कुरु। पाठ देकर उन्होंने सभी विद्यार्थियों को पाठ याद करने का आदेश दिया। सभी विद्यार्थी पाठ याद करने लगे। कुछ देर पश्चात द्रोणाचार्य ने विद्यार्थियों को पाठ सुनाने के लिए कहा। एक-एक करके सभी विद्यार्थियों ने पाठ सुना दिया। अंत में युधिष्ठिर की बारी आई। उसने कहा-'मुझे अभी तक पाठ याद नहीं हुआ।' और उसने पाठ नहीं सुनाया। सभी विद्यार्थियों ने उसकी बहुत भद्द की। द्रोणाचार्य ने भी उपालंभ दिया और दूसरे दिन पाठ याद करके आने का निर्देश दिया, पर दूसरे दिन भी युधिष्ठिर ने पाठ नहीं सुनाया। द्रोणाचार्य ने कड़ा उपालंभ दिया। तीसरे दिन भी यही स्थिति रही। युधिष्ठिर ने पाठ नहीं सुनाया। इस क्रम में कई दिन बीत गए। द्रोणाचार्य प्रतिदिन उसे पाठ सुनाने के लिए कहते और युधिष्ठिर याद न होने की बात कहता। इस स्थिति ने आखिर एक दिन द्रोणाचार्य को इतना कुपित कर दिया कि उन्होंने युधिष्ठिर के गाल पर कसकर दो चाटे जड़ दिए। चांटे लगने के साथ ही युधिष्ठिर ने करबद्ध निवेदन किया-'गुरुदेव! मुझे पाठ याद हो गया।' और उसने पाठ सुना दिया। द्रोणाचार्य ने कहा-'मुझे पहले यह पता होता कि चांटे लगने से पाठ याद होता है तो मैं यह प्रयोग प्रथम दिन ही कर लेता! इतने दिनों का समय व्यर्थ क्यों गंवाता!' पर तत्क्षण ही वे गंभीर हो गए और सोचने लगे कि युधिष्ठिर प्रतिभासंपन्न बालक है। इस स्थिति में तीन शब्दों के छोटे-से वाक्य का इतने दिनों तक याद न होने का कोई कारण नहीं है। फिर एक क्षण पहले तक इसे पाठ याद नहीं था और अगले क्षण याद हो गया। अवश्य इसमें कोई रहस्य होना चाहिए। मुझे वह रहस्य जानना "इस चिंतन के साथ ही उन्होंने युधिष्ठिर को अपने पास बुलाया और वात्सल्य • १९२ - - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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