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________________ अच्छाई और बुराई का संगम है आत्मा हम इस तथ्य को हृदयंगम करें कि ज्ञान, श्रद्धा और चारित्र तीनों आत्मा में हैं तो क्रोध, मान, माया और लोभ-ये भी आत्मा में ही हैं। आत्मा अच्छाई और बुराई का संगम है। इन दोनों स्थितियों में रहता हुआ भी बुराई को पहचानकर उसे छोड़नेवाला और अच्छाई को स्वीकार करनेवाला ही आत्मज्ञान को उपलब्ध हो सकता है। समाज-सुधार : व्यक्ति-सुधार कल रात्रि में हमारे सामने एक प्रश्न आया कि जब समाज-सुधार के बिना व्यक्ति-सुधार होनेवाला नहीं है, तब आप व्यक्ति-सुधार का प्रयास क्यों करते हैं। प्रश्न सुंदर है। बात समझने-जैसी है। वास्तव में हमारा लक्ष्य भी समाज-सुधार ही है, पर इस सुधार की प्रक्रिया व्यक्तिसुधार ही होगा। समाज बुरा है, यह बात मेरी समझ में नहीं आती। वस्तुतः समाज नहीं, व्यक्ति ही बुरा होता है। समाज में शराबी हैं, चोर हैं, लुटेरे हैं, ईर्ष्यालु हैं. इसी वजह से ही तो समाज बुरा है। मैं पूछना चाहता हूं कि शराब समाज कब पीता है; कलह करनेवाला समाज कब होता है। समाज तो व्यक्तियों का समूह है। व्यक्ति-व्यक्ति में जो बुराई होती है, उसी से समाज बुरा बन जाता है और औपचारिक रूप से समाज को कोसा जाने लगता है। समाज बीमार है तो इंजेक्शन किसके लेगेगा? व्यक्ति-व्यक्ति की बीमारी मिटानी होगी। बीमारी के कारण मिटाने होंगे और वातावरण भी सुधारना पड़ेगा। अतः व्यक्ति-सुधार की बात आवश्यक है। विज्ञान विवेक जगाता है __व्यक्ति-सुधार के लिए पहले संतों को सुनें, फिर ज्ञान करें। उसके पश्चात विज्ञान करें। आजकल विज्ञान का अर्थ प्रयोगात्मक ज्ञान किया जाता है, पर यहां इसका अर्थ विश्लेषणात्मक ज्ञान है। इससे ज्ञान विशद होता है। उदाहरणार्थ, धूम्रपान एक दुर्व्यसन है। इससे अपना बचाव करना चाहिए, क्योंकि यह अनेक रोगों का स्रष्टा है। इससे रक्त विषैला हो जाता है। मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और मस्तिष्क के स्नायु कमजोर हो जाते हैं। ....... • १७६ - - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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