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________________ दूसरा उदाहरण और देखें - एक व्यक्ति रात-रात में वृद्ध हो गया। रात को सोया, तब उसके बाल काले थे, किंतु सुबह उठा तो बाल चांदी - जैसे सफेद हो गए। यह कैसे हुआ ? मानसिक संक्लेश इसका कारण है। इस प्रकार का ज्ञान विज्ञान होता है। विज्ञान से विवेक जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति बुराई का प्रत्याख्यान कर देता है। पर इस संदर्भ में इतना अवश्य समझना चाहिए कि सवणे नाणे विन्नाणे की प्रक्रिया तभी उपयोगी बनती है, जब सामनेवाला व्यक्ति उसे सम्यक रूप में ग्रहण करे। बंदर जैसी मानसिकतावाले व्यक्ति को उपदेश देनेवाला स्वयं का ही नुकसान कर बैठता है । मादा बया अपने घोंसले में बैठी थी । घोंसले के सामने की डाल पर एक चंचल बंदर उछल-कूद कर रहा था। सहसा तेज वर्षा होने लगी । वातावरण सर्द हो गया। बंदर के शरीर में सिहरन पैदा हो गई। यह देखकर मादा बया से रहा नहीं गया। वह बोली हाथ तेरे, पांव तेरे, मिनख जैसी देह रे । झोंपड़ी तू छाव बंदर ! ऊपर बरसे मेह रे ॥ बंदर ने मुंह उठाकर देखा कि उपदेष्टा कौन है। मादा बया को देखते ही बोला पण्डितवादिनि ! गृहभञ्जने ॥ -ऐसा कहता हुआ वह एक ही छलांग में घोंसलेवाली डाल पर पहुंच गया और उसने घोंसला तोड़ दिया। मादा बया स्वयं को मुसीबत में पाकर सोचने लगी- मैंने कैसे मूर्ख को शिक्षा दे दी ! ऐसे मूर्खो का संपर्क ही अहितकार होता है । इसलिए कहा गया कि सीख देने में पात्रता का ध्यान देना चाहिए। अपात्रता की स्थिति में व्यक्ति अच्छी सीख से भी नुकसान उठा लेता है । अपात्रता के कारण ही तो अमृत-सा दूध सांप के पेट में जहर बन जाता है। मुक्ति की संपूर्ण प्रक्रिया उपदेश सुनकर ज्ञान होता है। ज्ञान के बाद विज्ञान होता है । तब बुराई के प्रति ग्लानि होती है। ग्लानि होते ही शपथपूर्वक प्रत्याख्यान कर दिया जाता है। प्रत्याख्यान से संयम होता है। फिर आश्रव रुकते हैं। उसके बाद तपस्या करने से बंधन टूट जाते हैं। स्वाध्याय और ध्यान की साधना सत्संग का महत्त्व सूचिमुखि ! दुराचारिणि ! रण्डे ! असमर्थो गृहारम्भे, समर्थो Jain Education International For Private & Personal Use Only १७७• www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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