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________________ सरलता और भोलापन आर्जव बहुत गहरे में सत्य का ही पर्यायवाची है। वैसे सत्य का असर सीधा नहीं होता, क्योंकि सत्य के प्रति सहसा विश्वास नहीं जमता, पर विश्वास पैदा होने के बाद उसका चामत्कारिक प्रभाव होता है। संसार में साधु की प्रतिष्ठा क्यों होती है? यह इसी लिए कि वह सत्यवादी होता है, ऋजु होता है। अतः वक्रता छोड़कर सरलता की उपासना करनी चाहिए। पर इस संदर्भ में एक बात समझ लेने की है। सरलता का अर्थ भोलापन नहीं है। भोला वह होता है, जो कुछ समझता नहीं, जबकि सरलता बाहर-भीतर से एकरूप होने का नाम है। साधु का दूसरा गुण है-मृदुता। मृदुता का अर्थ है-निरभिमानता। यह गुण जैसे-जैसे जीवन में विकसित होता जाता है, वैसे-वैसे व्यक्ति विनम्र बनता जाता है। उसका हर व्यवहार मृदु बनता चला जाता है। मृदुता अपने-आपमें एक ऐसा गुण है, जो अनायास ही दूसरे व्यक्ति को अपनी ओर खींच लेता है। एक व्यक्ति बोलता है तो सब अघा जाते हैं, वहीं दूसरा बोलता है तो सबको प्रिय लगता है। यह अंतर वाणी की अमृदुता और मृदुता का ही तो है। कोयल अपने इसी गुण के कारण सबको प्रिय लगती है। कवि धरम्मसी ने कहा है काक-सी कोयल श्याम शरीर है, क्रोध गंभीर धरै मन मांहि। औरन के सुत से धरै द्वेष, पे पोखत आपन के सुत नांहि। ऐसो स्वभाव बुरो उनको, पर एक भलो गुण है तिण मांहि। बोले 'धरम्मसी' वैण सुधा सम, तातै सुहात जहांहि-तहांहि॥ कोयल की मधुर वाणी प्रसिद्ध है। उसकी आवाज सुनकर बहुधा मेरे पैर रुक जाते हैं। सचमुच मधुर वचन अमृत के समान है। फिर जान-बूझकर अमृत को छोड़ जहर को कौन स्वीकार करना चाहेगा? पर इस संदर्भ में एक बात ध्यान देने की है। कोरी वाणी की मृदुता बहुत मूल्यवान नहीं है। वाणी की मृदुता के साथ-साथ हृदय की मृदुता भी रहनी चाहिए। इस मृदुता के साथ वाणी की मृदुता की शोभा और • १६८ - - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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