SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आकर्षण कई गुना बढ़ जाता है। साधु का तीसरा गुण है-क्षांति। क्षमा, तितिक्षा, सहिष्णुता आदि इसी के पर्यायवाची हैं। क्षांतिसंपन्न व्यक्ति के व्यवहार में अमृत टपकता रहता है, पर केवल ऊपरी व्यवहार का अमृत पर्याप्त नहीं है, अंतर में क्षांति का अमृत भी चाहिए। शास्त्रों में चार प्रकार के व्यक्ति बताए गए हैं१. भीतर से जहरमय और बाहर से अमृत के समान। २. भीतर से अमृतमय और बाहर से जहर के समान। ३. भीतर भी अमृत और बाहर भी अमृत! ४. बाहर और भीतर दोनों जहर-संपृक्त। संसार में चारों ही प्रकार के व्यक्ति मिलते हैं। प्रथम कोटि में वे लोग आते हैं, जो भीतर से जहर उगलते हैं और बाहर से कृत्रिम शिष्टाचार निभाते हैं, जिनके मन में कैंची चलती रहती है और वे बाहर गले मिलते रहते हैं। इस प्रकार के शिष्टाचार से सौहार्द नहीं पनप सकता। दूसरी श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं, जिनके पेट में तो पाप नहीं होता, पर वाणी में मधुरता नहीं रहती। तीसरी कोटि के व्यक्ति बहुत ऊंचे होते हैं। वे जैसे बाहर से अमृत-से लगते हैं, वैसे ही अंदर से होते हैं। चौथी श्रेणी के लोग तीसरी श्रेणी के लोगों के ठीक विपरीत होते हैं। यानी उनके बाहर भी जहर होता है और अंदर भी जहर। प्रसंग जैन-रामायण का जैन-रामायण का एक प्रसंग है। राम जब वन जा रहे थे, तब एक दिन रास्ते में सीता को प्यास लग गई। सीता ने पानी मांगा। खोज की गई, पर आसपास कहीं पानी नहीं मिला। इस खोज में वे एक गांव में गए। वहां पानी कम था, इसलिए जिससे भी उन्होंने पानी मांगा, उसने यही कहा-'यहां तो पानी नहीं है।' सीता प्यास से बेचैन हो गई, पर पानी नहीं मिला। नियति का खेल कैसा विचित्र है! एक राज-रानी इस प्रकार पानी के लिए तरसती रही! खैर, राम चलते-चलते अंततः ग्राम के बाहर बसे हुए एक ब्राह्मण के घर पहुंचे। ब्राह्मण की पत्नी ने देखा कि घर पर अतिथि आए हैं तो उसका दिल खुशी से नाच उठा। उसने राम, लक्ष्मण और सीता-तीनों का हार्दिक स्वागत किया। लक्ष्मण ने पानी के बारे में जिज्ञासा की तो वह बोली-'यहां का पानी अच्छा नहीं है। आप लोग कुछ देर विश्राम कीजिए। मैं आपको मीठा पानी पिलाऊंगी।' साधना का प्रभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy