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________________ उपर्युक्त संदर्भ में भिक्षु स्वामी ने कहा है साध नै श्रावक रतना री माला, एक मोटी दूजी नान्ही रे। - साधु और श्रावक दोनों रत्नों की मालाएं हैं। अंतर इतना ही है कि एक माला बड़ी है और दूसरी छोटी। एक के रत्न ज्यादा कीमती हैं और दूसरी के कम मूल्यवाले हैं। पर हैं दोनों खरे। एक माला के मोती खरे हों और दूसरी के कलचर हों, यह बात नहीं है। साधु महाव्रती होता है और श्रावक अणुव्रती। हां, तो साधु और श्रावक का धर्म एक है। साधु और श्रावक का ही क्यों, मनुष्यमात्र का धर्म एक है। भेद है तो मात्र मात्रा का। शक्ति-भेद के कारण साधु और श्रावक में यह मात्रा का अंतर रह जाता है। एक व्यक्ति उपवास करता है, पर दूसरा उपवास नहीं कर सकता। ऐसी स्थिति में वह एकाशन करता है। यहां समझने की बात यह है कि दूसरा व्यक्ति एक समय खाना खाता है, वह धर्म नहीं है, किंतु दोनों ने जो खाना छोड़ा है, (एक ने संपूर्ण और दूसरे ने यथाशक्य) वह धर्म है। जो एक समय भी खाना नहीं छोड़ सकता, वह ऐसा संकल्प कर सकता है कि मैं इतनी से ज्यादा चीजें नहीं खाऊंगा। जो चीजों का भी संकोच नहीं कर सकता, वह खाने में गृद्धि न रखने का संकल्प कर सकता है, क्योंकि स्वाद-संयम भी एक तत्त्व है। निष्कर्ष की भाषा में आप यह समझें कि जितना त्याग किया जाता है, वह धर्म है। फिर उसे कोई करे, चाहे जितनी भी मात्रा में करे और कभी करे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। धर्म की तरह पाप भी सबके लिए समान है। ऐसा नहीं कि साधु कोई दुष्प्रवृत्ति करता है तो वह पाप है और गृहस्थ करता है तो वह पाप नहीं है। पाप पाप ही है, चाहे उसका सेवन साधु करे या गृहस्थ। हां, इतना फर्क अवश्य पड़ता है कि साधु कोई दुष्प्रवृत्ति करता है तो वह सबका नजर में आ जाती है। फलतः वह बदनाम हो जाता है, लेकिन वही बुराई एक गृहस्थ करता है तो उस पर सहसा ध्यान नहीं जाता। काली कंबल पर काली स्याही की पूरी दवात भी गिर जाए तो सामान्यतः पता नहीं चलता, पर सफेद चद्दर पर एक छींटा भी लग जाए तो वह भी दिखने लगता है। साधु वक्रता करता है, इसका अर्थ है-सफेद चद्दर पर धब्बा लगना। अतः उसके लिए आर्जव का विशेष महत्त्व है। साधना का प्रभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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