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________________ ऑक्सिजन हमारे लिए काम का है। यह असर पुद्गलों का ही है। फिर वे कर्म रूप में अपना प्रभाव क्यों नहीं छोड़ सकते? हां, स्थिति, विपाक और रस हमारे द्वारा डाला जाता है। जैसे वैज्ञानिक पहले ही यह बता देते हैं कि यह बम इतने समय बाद फटेगा, उसी प्रकार हर-एक कर्म की अवधि भी निश्चित हो जाती है। विज्ञान धर्म का उपकारी है। वह धर्म की रहस्यात्मक बातें प्रयोग के धरातल पर स्पष्ट कर रहा है। कहीं-कहीं विज्ञान के प्रयोग धर्म और दर्शन से टकराते हैं। वहां हमें चिंतन का मौका मिलता है। यदि कोई तत्त्व सही हो तो उसे स्वीकार करने में किसी प्रकार का संकोच नहीं होना चाहिए। सुधारवादी धर्म जैन-धर्म एक सुधारवादी धर्म है। वह व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व सभी स्तरों पर सुधार का मार्ग प्रशस्त करता है। गहराई से देखा जाए तो वही धर्म वास्तव में धर्म है, जो सुधार की बात करे। जिस धर्म में सुधार की चर्चा नहीं, कार्यक्रम नहीं, उसे धर्म कहने का कोई औचित्य नहीं है। मैं तो यहां तक कहता हूं कि धर्म नाम ही सुधार का है। धर्म यदि सुधार की बात नहीं करेगा तो क्या अधर्म करेगा? जैनों की संख्या कम क्यों मेरे समक्ष अनेक बार प्रश्न आता है कि जब जैन-धर्म इतना महान है, तब उसका फैलाव कम क्यों; जैनों की संख्या लाखों में सिमटकर क्यों रह गई है। इसका कारण बहुत स्पष्ट है। धर्म आज कुल-परंपरागत बन गया है। जो जिस कुल में पैदा होता है, वह उसी कुलगत धर्म से संबद्ध हो जाता है। इस परिस्थिति के कारण जैनों की संख्या बहुत थोड़ी है। वैसे यदि हम जन्मना जैन की बात गौण कर दें और संस्कारों से जैनों की संख्या पर ध्यान दें तो यह संख्या बहुत बड़ी हो सकती है। मैं मानता हूं, जिन लोगों का भी अहिंसा और अपरग्रिह में विश्वास है, वे सब जैन हैं। सह-अस्तित्व, समन्वय, समता और मैत्री-ये चारों सिद्धांत स्वीकार करके चलनेवाले जैन हैं। अनेकांत को माननेवाले जैन हैं। इसी के समानांतर जैन कहलानेवाले लोगों में भी जिनका इन सिद्धांतों में विश्वास नहीं है, वे जैन कहलाने के सच्चे हकदार नहीं हैं। धर्म आत्मगत बने मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है कि धर्म के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रांति की जैन-धर्म : एक वैज्ञानिक धर्म - १६३ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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