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________________ परंपराओं को पकड़कर कैसे बैठ सकते हैं? आप ध्यान दें, वर्ण-व्यवस्था, सगाई-विवाह, जन्म-मरण"..."पर चलनेवाली रस्में "ये सब सामाजिक परंपराएं हैं। इन्हें शाश्वत धर्म मानना भूल है। हम पढ़ते हैं कि यौगलिक काल में शादी नहीं होती थी। एक युग्म पैदा होता। वह पहले भाई-बहिन की तरह रहता, बाद में वही पति-पत्नी की तरह रहता तथा एक युग्म को पैदा करके समाप्त हो जाता। इस परंपरा को माननेवाला आज की विवाह-परंपरा देखकर कहे कि वर्णव्यवस्था का लोप हो गया तो उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा, पर उसका यह कथन एक अपेक्षा से गलत नहीं है। परंपराओं में बदलाव चलता ही रहता है। आज जो पद्धति है, भविष्य में वह भी बदल सकती है। अतः इन परिवर्तित पद्धतियों में किसी का आग्रह नहीं होना चाहिए। एक लाभ : एक नुकसान ___जैन-दर्शन समन्वयवादी दर्शन है। वह सबके साथ समझौता कर . सकता है। इसी लिए तो वैदिक संस्कृति के संस्कार स्वीकार करने में उसने कोई संकोच नहीं किया। फलतः जन्म, मृत्यु, शादी की रस्मों और त्यौहारों की परंपराएं समान होती गईं। इससे हित तो यह हुआ कि जैन-संस्कृति और वैदिक संस्कृति में एकत्व हो गया और अहित यह हुआ कि जैनसंस्कृति की सामाजिक पद्धति लुप्त हो गई। प्राचीन साहित्य पढ़ने से पता चलता है कि जैनों की भी अपनी स्वतंत्र सामाजिक परंपराएं थीं। भक्त भगवान बन सकता है __ जैन-दर्शन ने धर्म को आत्मगत बनाने के लिए आत्मोपासना का तत्त्व दिया, क्योंकि आत्मा ही परमात्मा बनती है। आत्मगुणों के निकट जाने से परमात्मपद की दूरी मिट हो जाती है। दूसरे दर्शनों में भक्त को ईश्वर बनने का अधिकार नहीं दिया गया है, पर जैन-दर्शन ने यह अधिकार दिया कि उपासक उपास्य बन सकता है, आत्मा परमात्मा बन सकती है, भक्त भगवान बन सकता है। __ इस अधिकार को उपयोग में लाने का साधन है-कर्मवाद। मनुष्य स्वयं के द्वारा सृष्ट जाल में फंसता है और स्वयं ही उसे समाप्त कर सकता है। कर्म विजातीय पुद्गल हैं। इनका बहुत गहरा असर होता है। सुबहसुबह बगीचे में घूमना स्वास्थ्यप्रद माना जाता है, क्योंकि वहां का • १६२ -- - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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