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निर्मित हुआ। लोगों को ऐसा प्रतिभासित हो रहा था, मानो सारे शहर की दृष्टि बदल गई है। हर व्यक्ति धार्मिकता से ओतप्रोत बन गया है। विहार के समय वहां के कुछ विशिष्ट व्यक्तियों ने कहा-'हिसार का लोहा तप गया है। अभी आप यहां दस दिन और रहें तो कायाकल्प हो जाएगा।.......
मैं मानता हूं, यह बात सही है। इसलिए व्यक्ति के मन में जिस समय बुराइयों के प्रति ग्लानि पैदा हो जाए, उसे तभी अणुव्रत की मोहर लगा लेनी चाहिए। इसके विपरीत आंतरिक ग्लानि नहीं है तो दिन-भर राम-राम रटने पर भी अपेक्षित लाभ नहीं हो सकता।
शास्त्रों में कहा गया है कि जिस व्यक्ति को अनंत काल में एक बार भी सच्ची श्रद्धा मिल जाती है, वह मोक्ष का अधिकारी बन जाता है। कृत्रिम श्रद्धा का परिणाम स्थायी नहीं होता। जैसे सट्टे का पैसा टिकाऊ नहीं होता तथा जादुई पैसा भी स्थायी नहीं होता, उसी प्रकार कृत्रिम श्रद्धाजन्य शांति भी अस्थायी ही होती है। अतः सुनें, सम्यक श्रद्धा करें
और फिर तदनुरूप आचरण करें। तीनों का योग आपको मुक्ति के द्वार तक पहुंचाएगा।
श्रीगंगानगर ३१ मार्च १९६६
श्रद्धा और आचार की समन्विति
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