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________________ २६ : जैन-धर्म : एक वैज्ञानिक धर्म धर्म एक शाश्वत तत्त्व है। भगवान महावीर के शब्दों में वह है-अहिंसा। सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-ये सब अहिंसा के ही परिपार्श्व में घूमनेवाले तत्त्व हैं। साधारण व्यक्ति संक्षेप में गंभीर रहस्य की बात समझ नहीं सकते, अतः उनके लिए विस्तार से बताने की अपेक्षा रहती है। भगवान पार्श्व ने अपने समय में चार यामों का प्रतिपादन किया। उनमें ब्रह्मचर्य अपरिग्रह के साथ जुड़ा हुआ था। कोई महाव्रती स्त्री को अपनी नहीं मान सकता, क्योंकि स्त्री भी एक प्रकार का परिग्रह है। यह संक्षेपवादी मनोवृत्ति का परिणाम है। .. ... भगवान महावीर के युग में यह तर्क उपस्थित हुआ कि अब्रह्मचर्य में क्या दोष है। इस तर्क को समाप्त करने के लिए ब्रह्मचर्य को अलग महाव्रत का स्थान दिया गया। वास्तव में धर्म एक अहिंसा है और जो अहिंसा में विश्वास करते हैं, वे ही सही माने में धार्मिक हैं। विभिन्नता क्यों आप कहेंगे कि जब धर्म एक ही है तो उसे भिन्न-भिन्न रूपों में क्यों देखा जाता है। यह विभिन्नता भिन्न-भिन्न प्रवर्तकों के कारण है। धर्मचक्र-प्रवर्तक अपनी साधना से ज्ञान को अनावृत कर लेते हैं। फिर वे संसार का हर तत्त्व हस्तरेखा की तरह साक्षात देखते हैं। हर प्रवर्तक अपने समय में धर्म की अपने ढंग से व्याख्या देते हैं। फलतः एक नया दर्शन और एक नया मार्ग बन जाता है। जैन-धर्म एक स्वतंत्र धर्म है हर धर्मचक्र प्रवर्तक अनुशिष्टि देते हैं, अर्थ और धर्म को गति देते हैं तथा तत्त्व-साधना की अवगति देते हैं। भगवान महावीर अंतिम धर्मचक्र आगे की सुधि लेइ .१६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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