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जन एकत्रित हुए। उन्होंने सुलस को पिता का भार संभालने के लिए कहा। सुलस ने कहा-'जितना निभ सकेगा, उतना निभाने का प्रयास करूंगा।'
कौटुंबिक जनों ने उसके सिर पर परिवारप्रमुख की पगड़ी बांधने से पूर्व हाथ में एक तलवार पकड़ाई और पास बंधे भैंसे की गर्दन पर चलाने का निर्देश दिया। कुल-परंपरा के अनुसार परिवारप्रमुख बनने के लिए ऐसा करना आवश्यक माना जाता था, पर सुलस की आत्मा ने उसे यह कार्य करने की अनुमति नहीं दी। उसने भैंसे पर तलवार का प्रहार करने से स्पष्ट इनकार करते हुए कहा-'इसके लिए आप लोग मुझे बाध्य नहीं कर सकते।'
कौटुंबिक जनों ने कहा-'बाद में तुम्हारी इच्छा हो वैसा करना, पर अभी रस्म के रूप में एक बार तो तलवार चलानी ही होगी, अन्यथा पिता के मुंह पर कालिख पुत जाएगी। समूची बिरादरी बदनाम होगी।'
सुलस इधर कौटुंबिक लोगों का आग्रह देख रहा था और उधर मूक भैंसे की दयनीय दशा। उसका दिल दहल उठा। उसने कौटुंबिक जनों से कहा-'यदि तलवार चलाना इतना जरूरी है तो मैं अपने पैर पर चला सकता हूं, मूक पशु पर नहीं।' और ऐसा कहते हुए उसने पैर पर तलवार चलाने के लिए हाथ ऊपर उठाया। पारिवारिक जनों ने झट लपककर उसका हाथ पकड़ लिया और कहा-'यह क्या पागलपन है! अभी पैर कट जाता और फिर जीवन-भर रोते रहते।'
सुलस ने अत्यंत गंभीर एवं शांत स्वर में अपना मंतव्य स्पष्ट करते हुए कहा-'मैं पिताजी का उत्तराधिकारी अवश्य हूं, पर उनके दुष्कृत्यों का नहीं। पैर कटने से जैसा दुःख मुझे होता है, वैसा ही दुःख इस भैंसे को भी होता है। हालांकि मैं और मुझ-जैसे प्राणी अपना दुःख व्यक्त कर सकते हैं और यह भैंसा नहीं कर सकता, तथापि दुःख तो सबका एक सरीखा ही है, सुख तो सबका एक समान ही है। मौत मैं नहीं चाहता तो यह भैंसा भी नहीं चाहता। फिर इस भैंसे पर तलवार का प्रहार करना अनर्थ है, घोर अन्याय है। मैं यह अनर्थ और अन्याय कदापि नहीं कर सकता।'
यह उदाहरण है गहरी निष्ठा का। जिसकी रग-रग में अहिंसा के प्रति गहरी निष्ठा पैदा हो जाती है, उसका मन हिंसा के प्रति ग्लानि से भर जाता है। फिर वह हिंसा कर नहीं सकता।
श्रद्धा और आचार की समन्विति
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