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२४ : मद्यपान : एक घातक प्रवृत्ति
आज का कार्यक्रम मद्य-निषेध सम्मेलन के रूप में आयोजित है। कभी-कभी मन में आता है कि धर्मस्थान पवित्र स्थल होते हैं, वहां मद्यनिषेध सम्मेलन-जैसे कार्यक्रम क्यों होते हैं, यहां तो अध्यात्म की गहरी चर्चा होनी चाहिए, आत्मा-परमात्मा के विषय में चिंतन चलना चाहिए; इन्हें छोड़कर ऐसी तुच्छ बातों में क्यों जाएं। लेकिन फिर दूसरा चिंतन आता है कि आखिर धर्मस्थानों की पवित्रता है क्या; कोई स्थान तो पवित्र या अपवित्र होता ही नहीं; पवित्रता-अपवित्रता तो वहां आनेवाले व्यक्तियों पर निर्भर है; धर्मस्थानों में सब प्रकार के लोग आते हैं, उनमें नई पीढ़ी के लोग भी होते हैं; यदि उनके मन में युग की बुराइयों के प्रति घृणा के भाव नहीं होंगे तो पवित्रता कायम कैसे रहेगी। धार्मिकता की पृष्ठभूमि
हम लोग आपको धर्म की ऊंची बातें सुनाना चाहते हैं, पर सबसे पहले पृष्ठभूमि बनाना जरूरी है। पात्र बिना धर्म टिकेगा कहां? कहा जाता है कि शेरनी का दूध कांस्य, ताम्र या पीतल के बरतन में नहीं टिकता। उसके लिए तो स्वर्णपात्र की अपेक्षा रहती है। इसी प्रकार हम यह समझें कि धार्मिकता की पृष्ठभूमि भी ठीक हो। धार्मिकता की पृष्ठभूमि है नैतिकता; और नैतिक बनने के लिए बुराइयों का परित्याग व अच्छाइयों स्वीकरण अपेक्षित है। संन्यास और नशा ___नशा भी एक बुराई है और ऐसी बुराई है, जिससे सारे संसार को बचाना आवश्यक है। नशे के रूप में कुछ पदार्थों का उपयोग तो आजकल धार्मिक कहलानेवाले भी करने लगे हैं। गांजा वे योगी पीते हैं, जो अपने-आपको भगवान के भजन में मस्त मानते हैं। तथाकथित योगियों के पास सहज मस्ती तो होती नहीं, इसलिए गांजा-जैसे मादक
मद्यपान : एक घातक प्रवृत्ति
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