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________________ एक बहुत बड़ी भूल हो जाती है। व्यक्ति आत्मा को भूलकर शरीर के सौंदर्य में उलझ जाता है, उसे ही बनाने-संवारने में जुट जाता है। आत्म-विकास का लक्ष्य लगभग गौण हो जाता है। यह भूल न हो, इसके लिए आत्मान्यः पुद्गलश्चान्यः का सिद्धांत समझना आवश्यक है। यह सिद्धांत जब समझ में आ जाता है, तब व्यक्ति शरीर और आत्मा के विसंबंध की बात सोचने लगता है। वह शरीर में आसक्त नहीं होता। आत्मोदय का लक्ष्य उसके सामने सदैव स्पष्ट रहता है। मृत्यु के बाद शरीर से संबंध टूटता है, पर यह छूटनेवाला शरीर मात्र स्थूल शरीर है। सूक्ष्म शरीर मरने के बाद भी आत्मा को नहीं छोड़ते और कालांतर में दूसरे स्थूल शरीर की रचना कर लेते हैं। सूक्ष्म शरीर छूटने से ही आत्मा का सही स्वरूप प्रकट होता है, आत्मानंद की प्राप्ति होती है। हमें आत्मा के विशुद्ध स्वरूप का साक्षात्कार करना है, आत्मानंद को उपलब्ध होना है, इसलिए सूक्ष्म शरीरों से मुक्ति पाने के लिए सचेष्ट होना होगा। भगवान महावीर ने इस दिशा में हमारा मार्गदर्शन किया है। हम पदन्यास करें। सही दिशा में बढ़नेवाले चरणों के लिए कोई मंजिल दूर नहीं होती। श्रीगंगानगर २८ मार्च १९६६ .१४८ - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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