________________
जाता है कि पर्वत पर अथवा अंतरिक्ष में जानेवाले व्यक्ति यहां से ऑक्सीजन लेकर जाते है, क्योंकि वहां प्राणवायु नहीं है अथवा स्वल्प है। इसका अर्थ यह हुआ कि श्वास के काम आने योग्य पुद्गल वहां नहीं हैं अथवा स्वल्प हैं। यहां समझने की बात यह है कि तत्त्वतः जीव की कोई भी प्रवृत्ति बिना पुद्गलों की सहायता के नहीं हो सकती। सुख-दुःख और पुद्गल
- इससे और आगे चलें तो हमें मानना होगा कि प्राणी का सुख-दुःख भी पुद्गलों के कारण ही है। हालांकि कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि सुख-दुःख धर्मराज देते हैं। वे संसार-भर के प्राणियों के पुण्य-पाप का पूरा-पूरा लेखा-जोखा करते हैं। उसी के आधार पर वे सभी के सुख-दुःख का निर्णय करते हैं। पर यह बात तथ्यपरक नहीं है। वास्तविकता यह है कि प्राणी अपनी सत-असत प्रवृत्ति के द्वारा पुद्गल अपनी ओर आकर्षित करता है और वे पुद्गल आत्मा से संबद्ध हो जाते हैं। कालांतर में उनकी प्रतिक्रिया के रूप में प्राणी सुख-दुःख का वेदन करता है। आत्मा और पुद्गल का संबंध
आत्मा की विशद खोज होने पर भी अब तक यह पता नहीं चला है कि आत्मा और पुद्गल का संबंध कब और कैसे होता है। अमुक समय से संबंध मानने का अर्थ यह है कि पहले आत्मा मुक्त थी, परंतु मुक्त आत्मा के बंधन होने का कोई कारण नहीं मिलता। इसलिए दार्शनिकों ने इस गुत्थी को सुलझाने के लिए बताया कि आत्मा और पुद्गल का संबंध अनादि है और यह संबंध तब तक रहता है, जब तक आत्मा का पुद्गलों से एकदम संबंध-विच्छेद नहीं हो जाता। ___अध्यात्म और भूत की चर्चा के अंतर्गत हमने आत्मा और पुद्गल को समझा। अध्यात्म और भूत-ये दोनों सापेक्ष तत्त्व हैं। कोई व्यक्ति एकांततः आध्यात्मिक या भौतिक नहीं रह सकता। एक ही बात को मान लेना उचित नहीं है। हम ऐकांतिक न बनें, बल्कि जिज्ञासु रहें। जिज्ञासुदृष्टि से ही तत्त्व मिल सकता है। हम आत्मा को किसी स्थिति में भुला नहीं सकते। साथ ही पुद्गलों की उपेक्षा भी नहीं कर सकते।
हालांकि अध्यात्म के विकास की प्रक्रिया और भूत के विकास की प्रक्रिया दोनों भिन्न-भिन्न हैं, फिर भी एक का विकास दूसरे के लिए बाधक बनता है। जैसे-एक व्यक्ति उपवास करता है। उपवास आत्मा की
आत्मा और पुद्गल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org