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स्वाध्याय, ध्यान, सत्संग और आत्म-चिंतन का क्रम बताया गया है। इस प्रक्रिया से सब उलझनें समाहित हो जाती हैं।
आत्मा व्यक्तिगत है
आत्मा हम सबके पास है । वह व्यक्तिगत है, हमारी निजी संपत्ति है । उधार ली हुई नहीं है। यदि आत्मा को व्यक्तिगत न मानें तो दो व्यक्तियों का सुख-दुःख अलग-अलग नहीं हो सकता। इसी प्रकार जन्म, मृत्यु आदि भी अलग-अलग नहीं हो सकते। अतः मानना होगा कि मनुष्य की ही नहीं, हर पशु, हर पक्षी की आत्मा भी व्यक्तिगत है। हर प्राणी की आत्मा व्यक्तिगत है। कर्म - पुद्गलों के संबंध से हर प्राणी की आत्मा अनेक अवस्थाओं में हमारे सामने आती है।
परमाणु और वैज्ञानिक खोज
आत्मा के बाद हमारा विवेच्य विषय है - पुद्गल । पुद्गल क्या है ? स्पर्श, रस, गंध और वर्ण से युक्त द्रव्य को पुद्गल कहते हैं । परमाणु, अणु (देश) और स्कंध - ये पुद्गल की परिणतियां है। पुद्गल का सबसे सूक्ष्म रूप परमाणु है। वैज्ञानिक कहते हैं कि हमने परमाणु को पा लिया है, पर मैं मानता हूं कि उन्होंने परमाणु को नहीं पाया है। वैज्ञानिक पहले भी कहते थे कि हमने परमाणु को जान लिया है, किंतु बाद की खोजों से उन्होंने अपनी पहली मान्यता में संशोधन कर लिया। आज वे जिसे परमाणु कह रहे हैं, जैन - सिद्धांत की दृष्टि से उसके भी अनंत खंड हो सकते हैं, क्योंकि सूक्ष्म यंत्र से दृश्य पुद्गल भी अनंतप्रदेशी स्कंध ही हो सकता है। उससे कम प्रदेशोंवाला पुद्गलस्कंध यंत्रों से भी नहीं देखा जा सकता । दो प्रकार के परमाणु
जैन-शास्त्रों में दो प्रकार के परमाणु बताए गए हैं-व्यवहार परमाणु और निश्चय परमाणु। निश्चय परमाणु वह होता है, जिसका कोई भी खंड न हो सके। व्यवहार परमाणु अनंतप्रदेशी स्कंध ही होता है, पर व्यवहार में चूंकि वह सबसे सूक्ष्म लगता है, इसलिए उसे भी परमाणु मान लिया गया है।
अनंत परमाणुओं के मिलने से निष्पन्न पुद्गलस्कंध आत्मा के काम आते हैं। खाना, पीना, पहनना, ओढ़ना, बोलना, चिंतन करना, श्वास लेना "सभी क्रियाओं में पुद्गलों की अनिवार्य सहायता रहती है। कहा
आगे की सुधि इ
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