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________________ कि पृथ्वी घूमती है। वैज्ञानिकों के इस सुविधावाद से साधारण लोगों के सिद्धांत लड़खड़ा गए। फलतः वे सिद्धांतों पर अविश्वास करने लगे। __ अहिंसा और अपरिग्रह को दो मानना भी हमारा सुविधावाद है। मूलतः इनका संबंध एक-एक किस्म की वृत्ति से है। अहिंसा की वृत्ति का फलित है मैत्री और अपरिग्रह से संबंध रखती है अनासक्ति। मैत्री का अर्थ है-समता। व्यक्ति के मन में जितनी समता होती है, उतनी ही अहिंसा उसके जीवन में आ पाती है। इसलिए समता अहिंसा का ही पर्यायवाची शब्द बन जाता है तथा अपरिग्रह और अनासक्ति भी एक ही अभिधेय को अभिव्यक्ति देते हैं। परिग्रह की सुरक्षा अहिंसा से संभव नहीं राष्ट्र-सुरक्षा के लिए अहिंसा की जो बात की जाती है, वह मात्र व्यवहार नय की भाषा है। निश्चय नय की अपेक्षा से तो राष्ट्र-सुरक्षा अहिंसा से संभव नहीं है। क्यों? यह इसलिए कि राष्ट्र का अर्थ है-घर, परिवार, संपत्ति आदि। ये सब परिग्रह हैं। परिग्रह की सुरक्षा अहिंसा से कभी हो नहीं सकती। गांधीजी ने कहा कि हम अपने दैनंदिन व्यवहार में अहिंसा लाएं, राजनीतिक क्षेत्र में भी अहिंसा को व्यवहार्य बनाएं। इसके लिए सत्याग्रह, अनशन और असहयोग का सहारा भी लिया जा सकता है, लेकिन मैं सोचता हूं कि ऐसा करने का एकमात्र उद्देश्य है-राष्ट्र-सुरक्षा। राष्ट्र के प्रति लोगों की आसक्ति है, इसलिए वे इसकी सुरक्षा चाहते हैं। आसक्ति परिग्रह है और परिग्रह की सुरक्षा हिंसा है। यह तत्त्व विद्वद्भोग्य है, तथापि मैं जन-सामान्य से इतना तो अवश्य कहूंगा कि परिग्रह की सुरक्षा में भी बन सके वहां तक समता का मार्ग स्वीकार करना चाहिए। कल एक कार्यकर्ता ने प्रश्न उठाया-'भारतवर्ष स्वयं शस्त्र उठाता है, युद्ध करता है, ऐसी स्थिति में विश्वमंच पर अहिंसा की चर्चा करना उसके लिए कहां तक उचित है?' मैंने कहा-'यह लोगों की समझ की कमी है कि उन्होंने देश को पूर्ण अहिंसक मान लिया। वास्तव में कोई राष्ट्र पूर्ण अहिंसक नहीं हो सकता। ऐसा क्यों नहीं कहा जाता है कि भारतवर्ष आक्रांता नहीं है; क्रूर नहीं है, हम इस सीमा तक अहिंसक हैं; हमारे पास जमीन है, संपत्ति है; उनकी शांति का मार्ग अपरिग्रह -१२३ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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