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२० : शांति का मार्ग अपरिग्रह
अहिंसा और अपरिग्रह
भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह के उपदेष्टा थे। उन्होंने इन दोनों पर सर्वाधिक बल दिया है। गहराई से देखा जाए तो अहिंसा और अपरिग्रह में अविनाभावी संबंध है। एक के विकास से दूसरे का विकास भी अवश्य होता है। जहां हिंसा चरम सीमा तक पहुंच जाती है, वहां परिग्रह भी सीमा लांघ देता है। परिग्रही व्यक्ति अहिंसक नहीं रह सकता, क्योंकि अहिंसा और परिग्रह में परस्पर गहरा विरोध है।
अहिंसा और अपरिग्रह का अन्योन्याश्रय देखकर सहज ही एक प्रश्न पैदा होता है कि इन दोनों को भिन्न-भिन्न क्यों माना गया। शाश्वत सत्य की दृष्टि से तो अहिंसा और अपरिग्रह दोनों एक ही हैं, पर व्यवहार में हम इन्हें अलग-अलग मानते हैं, यह हमारा सुविधावाद है। विज्ञान : एक सुंदर उपक्रम
विज्ञान मानता है कि पृथ्वी घूमती है और सौरमंडल स्थिर है। हमारे शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी स्थिर है तथा सौरमंडल घूमता है। कुछ समय पहले यह कहा जाता था कि शास्त्र झूठे हैं, क्योंकि उनकी बातें विज्ञान से मेल नहीं खातीं। मैं मानता हूं कि विज्ञान एक सुंदर उपक्रम है। वैज्ञानिक स्वयं को सिद्ध नहीं मानते। वे अनुसंधान करते हैं। उससे जो तत्त्व मिलता है, उसे सबके सामने रखते हैं, पर आगे अनुसंधान के लिए द्वार बंद नहीं करते।
अपनी वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के बारे में आइंस्टीन ने बताया कि पृथ्वी घूमती है, यह कथन हमारी सुविधा के लिए है। इससे विश्व की गति-विधि समझने-समझाने में सुविधा रहती है। यदि हम पृथ्वी को स्थिर मानकर सौरमंडल को गतिशील मानें तो भी फलित वही आएगा, पर तत्त्व समझने-समझाने में थोड़ी कठिनाई हो जाएगी, इसलिए हमने मान लिया
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आगे की सुधि लेइ
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