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विचित्र स्थिति है कि व्यक्ति सुख और शांति की चाह तो रखता है, पर कदम उलटे रास्ते पर बढ़ाता है! यदि सुख और शांति से जीवन जीने की चाह है तो उसे इस मनोवृत्ति का परित्याग करके श्रम को महत्त्व देना होगा।
आत्मा से महात्मा और महात्मा से परमात्मा बनने की बात मैंने कही। परमात्मा बनने की बात जितनी आकर्षक है, उतनी आसान नहीं। इसके लिए सतत पुरुषार्थ करने की अपेक्षा होती है। जो व्यक्ति सतत पुरुषार्थ करता रहता है, उसकी कदापि हार नहीं होती। वह देर-सवेर अपने अभीप्सित लक्ष्य की प्राप्ति में निश्चय ही सफल होता है। आज तक अनंत-अनंत प्राणियों ने सही दिशा में अपना पुरुषार्थ नियोजित कर परमात्म-पद प्राप्त किया है। आपका भी यह सौभाग्य जाग सकता है। बस, आप दृढ़ निश्चय के साथ अपनी पुरुषार्थ-चेतना जाग्रत करें।
सिरसा २७ फरवरी १९६६
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