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१५ : मुक्ति का मार्ग
सुख या दुःख-मुक्ति इस संसार का सर्वाधिक प्रिय शब्द है। इसका कारण है। संसार का कोई भी प्राणी दुःख नहीं चाहता। दुःख सबको अप्रिय है। इसी लिए व्यक्ति जैसे-तैसे दुःख से छूटने का प्रयत्न करता है। हालांकि चाहने मात्र से सभी प्राणियों की दुःख-मुक्ति नहीं होती, सब सुखी नहीं होते, तथापि इतना तो हमें स्वीकार करना ही होगा कि सुख-प्राप्ति हर हृदय की चाह है।
सुख के दो प्रकार हैं। पहले प्रकार का सुख सांसारिक है। यानी प्राणी खाने, पीने, भोग-विलास आदि में एक प्रकार की सुखानुभूति करता है, पर यह सुख निर्विघ्न नहीं है। इसमें स्थायित्व नहीं है। यह कालांतर में दुःख में परिणत हो सकता है। दूसरा सुख आत्मिक सुख कहलाता है। दर्शन में इसे मोक्षसुख की संज्ञा दी गई है। शास्त्रों में मोक्षसुख की विस्तृत चर्चा है। यह सुख निर्विघ्न है, शाश्वत है। इस सुख को उपलब्ध हो जाने के पश्चात प्राणी के लिए कुछ भी उपलब्ध करना शेष नहीं रहता। ऐसा सुख भला कौन नहीं चाहता? हालांकि बहुत-से लोग परमात्मा से अनुराग नहीं करते, उसके प्रति श्रद्धा नहीं करते, तथापि निर्विघ्न और शाश्वत सुख की आकांक्षा उनकी भी रहती है। दुःख-मुक्ति के उपाय
__पूछा जा सकता है कि यह निर्विघ्न सुख कैसे प्राप्त किया जाए। इस संदर्भ में आचार्यों ने हमारा मार्ग-दर्शन किया है
तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा, विवज्जणा बालजणस्स दूरा। सज्झायएगंतनिसेवणा य, सुत्तत्थसंचिंतणया धिई य॥
गुरुवृद्ध की सेवा दुःख-मुक्ति का पहला मार्ग है। हर व्यक्ति स्वयंबुद्ध नहीं होता, इसलिए गुरु के पथ-दर्शन की अपेक्षा रहती है। वृद्ध चार प्रकार के होते हैं-वयोवृद्ध, तपोवृद्ध, अनुभववृद्ध और विद्यावृद्ध। वयोवृद्ध मुक्ति का मार्ग
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