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________________ हो जाएंगे, उस दिन स्वयं परमात्मा बन जाएंगे। परमात्मा का स्वरूप कुछ लोग मुझसे पूछते हैं कि परमात्मा है या नहीं। आपमें से भी किसी के मन में ऐसी जिज्ञासा या संदेह हो तो वह आपने-आपको समाहित कर ले। परमात्मा है, निश्चय ही है, पर वह कोई एक सत्ताविशेष नहीं है। हर आत्मा ही अपने शुद्ध ज्ञानदर्शनमय स्वरूप में परमात्मा है। जब तक यह शुद्ध रूप कर्मों से आवृत रहता है, तब तक वह आत्मा कहलाता है; और जब त्याग-तपस्या के द्वारा कर्मों का आवरण दूर कर दिया जाता है, उस दिन वह परमात्म-रूप प्रकट हो जाता है। इस क्रम से आज तक अनंत-अनंत परमात्मा हो चुके हैं और भविष्य में अनंतकाल तक परमात्मा होने का क्रम चलता रहेगा। आप भी प्रयत्न करें कि आपके कर्मों का आवरण क्षीण हो। हालांकि अनंतकालीन कर्मों का आवरण तोड़ना कोई सामान्य बात नहीं है, वह दीर्घकालीन साधना-सापेक्ष है, फिर भी निराश होने का कोई कारण नहीं है। जिस सीमा तक आप वह आवरण दूर हटाते हैं, उस सीमा तक तो आप परमात्मा बन ही जाते हैं, उस शिखर की उतनी चढ़ाई तो पूरी कर ही लेते हैं। महात्मा की पहचान हां, तो आत्मा संसार के सामान्य प्राणी को कहते हैं। परमात्मा उसकी विशुद्ध अवस्था का नाम है। इन दोनों के बीच एक अवस्था और है और वह है-महात्मा। महात्मा वह होता है, जो सामान्य प्राणी की जीवनशैली से ऊपर उठकर विशिष्ट जीवन-शैली से जीता है, परमात्मा बनने की दिशा में सलक्ष्य प्रयाण कर देता है। व्यवहार में उसकी पहली पहचान है-उदारवृत्ति। उदारवृत्ति का तात्पर्य है कि सबको अपनी आत्मा के तुल्य समझना। सामान्य आदमी की चिंतन-धारा संकीर्ण होती है। वह आत्मतुला के सिद्धांत को व्यवहार्य नहीं कर पाता। कवि ने कहा है अयं निजः परो वेति, गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु, वसुधैव कुटुम्बकम्॥ - जो अपने और पराए की भेदरेखा बनाकर चलते हैं, वे संकीर्ण चित्तवाले होते हैं। जिनका चित्त उदार है, वे सारी जगती को ही अपना कुटुंब-कबीला समझते हैं। महात्मा के उदार हृदय से सदा यह ध्वनि निकलती है आत्मा: महात्मा: परमात्मा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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